क्या हाइपरलूप बन पाएगा पांचवा ट्रांसपोर्टेशन मोड ?
हाईपरलूप । ये शब्द आपने हाल में कई बार सुना होगा। अगर नहीं तो ध्यान से सुनिएगा क्योंकि ये एक दिलचस्प कौंसेप्ट है और इसकी शुरूआत सोचने वालों के हिसाब से ये एक क्रांतिकारी कौंसेप्ट है, ट्रांसपोर्टेशन का पांचवा मोड कहला रहा है। हवाई जहाज़, ट्रेन, जलमार्ग और सड़क यातायात के बाद हाईपरलूप ट्रांसपोर्टेशन का ये आयाम। तो आख़िरकार इस हाईपरलूप में इतना अलग क्या है जो इसे ट्रांसपोर्टेशन का एक अलग मोड बना रहा है और क्यों दुनिया भर की दो दर्ज़न से ज़्यादा कंपनियां जद्दोजहद में लगी हुई हैं इस कौंसेप्ट में सफल होने में और क्या है इस सबका रिश्ता टेस्ला जैसी इलेक्ट्रिक कार बनाने वाले इलॉन मस्क से ?
ट्रैफ़िक में फंसे फंसे आप ज़रूर सोचते होंगे कि काश चॉपर या हेलिकॉप्टर होता तो आप वहां से निकल पाते पर टेस्ला कार और स्पेस एक्स कंपनी की शुरूआत करने वाले ईलॉन मस्क को अलग आइडिया आया। उन्होंने ऊपर की जगह नीचे जाने की सोची। उन्होंने सोचा कि अगर सड़कों की जगह कोई ऐसी ट्यूब हो जिसमें कैप्सूल नुमा गाड़ियां एक जगह से दूसरी जगह पर जा सकें तो कैसा रहेगा । और इसी आइडिया से आइडिया आया हाइपरलूप का। एक ऐसा ट्रांसपोर्टेशन जिसमें सवारी या सामान, ज़मीन के नीचे से या ऊपर से हज़ार किलोमीटर प्रतिघंटे से भी तेज़, लगभग 1200 किमीप्रतिघंटे की रफ़्तार से एक जगह से दूसरी जगह पर जा सकेंगे।
जीहां आप अगर सोच रहे हैं कि ये तो एक कौंसेप्ट है, टेक्नॉलजी की दुनिया का एक सपना है तो फिर आप ग़लत नहीं सोच रहे। ये वाकई एक सपना ही है, जिसे शुरू में तो एक ही शख़्स देख रहा था, पर अब दुनिया भर की दर्जन भर टीमें देख भी रही हैं और सच करने में भी लगी हुई हैं।
दुनिया में हाई स्पीड ट्रेनों की टेस्टिंग तो हम देखते रहते हैं, जहां यूरोप और चीन में होड़ लगी रहती है। पर इन ट्रेनों की रफ़्तार को ज़्यादा से ज़्यादा बढ़ाने की दिशा में सबसे बड़ा अड़ंगा लगता है फ्रिक्शन का यानि घर्षण का। चाहे वो पहियों का हो या फिर हवा का, और जैसे जैसे रफ़्तार बढ़ती है, दोनों बढ़ते जाते हैं। वहीं हवाई जहाज़ इतनी रफ़्तार इसलिए पकड़ पाते हैं क्योंकि वो कम दबाव वाले इलाक़े में उड़ते हैं। तो हाइपरलूप के साथ इसी घर्षण और प्रेशर को वैक्यूम पाइप के ज़रिए ख़त्म करने का आइडिया है। पर ये सिर्फ़ आइडिया था…
हाईपरलूप कौंसेप्ट दरअसल एक ऐसे ट्रांसपोर्टेशन की बात करता है जिसमें आंशिक रूप से वैक्यूम पाइप में से ट्रांसपोर्टेशन कैप्सूल या पॉड को एक जगह से दूसरे जगह पर, हवाई जहाज़ की रफ़्तार से भेजे जा सकें। ये मुमकिन होगा इलेक्ट्रिक मोटर द्वारा मिली ताक़त, कंट्रोल किए गए मैगनेटिक लैविटेशन यानि चुंबकीय शक्ति से हवा में तैरने की क्षमता और पाइप में हवा के कम से कम दबाव से कम हुए फ़्रिक्शन की बदौलत। फ़िलहाल तो इस ट्रांसपोर्टेशन के लिए अलग-अलग रफ़्तार क्लेम किया जा रहा है, पर हाल में हाइपरलूप वन ने जो रफ़्तार अपने दूसरे टेस्ट में हासिल की थी वो थी 310 किमीप्रतिघंटे की।
दरअसल ईलॉन मस्क एक ऐसे उद्योगपति हैं जो अपने नए नवेले आइडिया के लिए जाने जाते हैं। एक साथ कई अलग अलग आइडिया पर काम करने के लिए भी जाने जाते हैं। तो इस ईलॉन मस्क ने, जो दुनिया भर में नामी इल्केट्रिक कार ‘टेस्ला’ के मालिक हैं, अंतरिक्ष में सस्ती यात्रा करवाने और मंगल ग्रह पर कॉलनी बनाने पर काम करने वाली कंपनी स्पेस एक्स के मालिक हैं, उन्होंने 2013 में एक चैलेंज का ऐलान किया जिसमें टीमों को आमंत्रित किया गया कि वो एक ऐसे पॉड या ट्रांसपोर्टेंशन कैप्सूल बनाएं जो एक वैक्यूम पाईप में सफ़र कर सकें। टीम आएं और अपनी अपनी सोच और तकनीक लगाकर इस ट्रांसपोर्ट के मोड को सपने से हक़ीक़त में बदलें। और अब इस चैलेंज में लगभग दो दर्जन टीमें फाइनलिस्ट हैं। ये टीमें ना सिर्फ़ कांपिटिशन में हिस्सा ले रही हैं बल्कि इस ट्रांसपोर्टेशन को हक़ीकत बनाने की दिशा में आगे भी बढ़ चुकी हैं। सरकारों से बातें हो रही हैं। स्थानीय एजेंसियों से बातें हो रही हैं। प्राइवेट कंपनियां फंड कर रही हैं। स्पॉनसरशिप जुटाए जा रहे हैं जिससे हाईपरलूप सच्चाई बन सके।
इस रेस में हाइपरलूप वन इकलौती कंपनी बन गई है जिसने चलता फिरता हाइपरलूप बना लिया है। इसकी दो फ़ेज़ में टेस्टिंग भी हो चुकी है। कंपनी ने नेवाडा के रेगिस्तान में 500 मीटर का टेस्ट लूप बनाया है। जिसमें दूसरे फ़ेज़ की सफल टेस्टिंग में हाइपरलूप वन एक्सपी 1, फ़र्स्ट जेनरेशन पॉड ने 310 किमीप्रतिघंटे की स्पीड पकड़ी। यही नहीं जो असल कौंसेप्ट है, यानि कम प्रेशर वाले ट्यूब में ट्रैक से ऊपर उठ कर ग्लाइड करने का, वो भी इस पॉड ने किया। ३०० मीटर तक ऐक्सिलिरेट किया, मैगनेटिक लेविटेशन या चुंबकीय ताक़त की वजह से ट्रैक से ऊपर उठे हुए दौड़ा और आख़िर में ब्रेक लगा कर रुका। इस टेस्टिंग के साथ कंपनी ने दावा किया है कि उनकी टेक्नॉलजी काम कर रही है और वो दुनिया भर की कंपनियों और सरकारों से गठजोड़ करके ऐसे मॉडल को बनाने की योजना भी बना रही है।
वहीं इस कांपिटिशन में हिस्सा लेने के लिए भारत की टीम भी एकजुट हुई । जिसका नाम हाइपरलूप इंडिया है। उसमें कई इंजीनियरिंग के छात्र इकट्ठा हुए और वो भी कोशिश कर रहे हैं अपने हाइपरलूप प्रोटोटाइप के साथ स्पेस एक्स हाइपरलूप चैलेंज में बाज़ी मारने की ।हाइपरलूप वन तो ये दावा कर रही है कि अपने पॉड्स में दस दस सेकेंड में सवारियों को भेज कर हर घंटे बीस हज़ार सवारियों तक को भेजा जा सकती है।
ईलॉन मस्क ने 2013 में जब इस आइडियो को पेश किया तो इसे अपनी कंपनी या अपने लिए किसी वेंचर के तौर पर नहीं बल्कि दुनिया के बाक़ी इंजीनियरों और साइंटिस्टों के लिए एक चुनौती की तरह पेश किया। इसे ओपेन सोर्स रखा, जिसका मतलब था कोई भी साइंटिस्ट इंजीनियर इस आइडिया पर काम कर सकता था। फिर शुरु हुआ स्पेस एक्स हाइपरलूप चैलेंज का। जिसे स्वीकार करते हुए दुनिया भर में कई टीमें बन गईं। साइंटिस्टों, इंजीनियरों और स्टूडेंट्स के साथ प्राइवेट कंपनियों की भी। ये सभी अपने अपने तरीक़े से मस्क के आइडिया आगे लेकर जा रहे हैं। और इन सबका टेस्ट हो रहा है स्पेस एक्स के हॉथॉर्न, कैलिफ़ोर्निया स्थित हेडक्वार्टर में । जहां सभी पॉड्स को टेस्ट करने के लिए एक मील लंबा ट्रैक बनाया गया है।
हाइपरलूप वन के को-फ़ाउंडर ने कहा कि जब आप हाइपरलूप वन की आवाज़ सुनते है तो आप दरअसल भविष्य की आवाज़ सुनते हैं।
पर फ़िलहाल भविष्य की ये आवाज़ बहुत दूर से आ रही है और फ़िलहाल जवाब से ज़्यादा सवाल पूछ रही है। जैसे इसकी सुरक्षा का क्या होगा, आपदा में क्या होगा, किसी हमले की स्थिति में क्या होगा ? ख़र्च के हिसाब से व्यवहारिक होगा कि नहीं । पर फ़िलहाल तो टेक्नॉलजी को लेकर ही उत्सुकता ज़्यादा है।
इंतज़ार है इस चैलेंज के अगले नतीजों का।
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