कई साल बाद जब मैं अपने गाँव गया …
पार्ट-1 :“स्टॉपओवर पटना- अपने गृहनगर में टूरिस्ट”
मेरा गाँव पटना के पास नहीं। पटना से दूर है। लगभग एक सौ सत्तर-अस्सी किलोमीटर दूर, मधुबनी से एक-डेढ़ कोस दूर। तो कई साल के बाद वहाँ जाने का कार्यक्रम बना। मेरे गाँव का सफ़र हमेशा यादगार रहा है मेरे लिए, एक एक हिस्सा। वहाँ जाने के लिए बस से लेकर हाजीपुर पुल पर ट्रैफ़िक जाम से चिनिया केला और टूटी फूटी सड़कों पर हिचकोले भरा सफ़र । पर मेरी उम्र और बदहाल होती ट्रांसपोर्ट व्यवस्था ने उस सफ़र में से रोमांच और रोमांस दोनों को निचोड़ लिया था। तो भले ही अपने बेटे को मैं वो सफ़र के उस पहलू का स्वाद भी देना चाहता था, मैंने दो फ़ैसले किए । एक तो अपने बचपन की फ़ेवरेट शाही तिरुपति बस ना लेने की और दूसरे सुबह-सुबह सफ़र की शुरूआत करने की, जिससे हाजीपुर पुल के ट्रैफ़िक से बचा जा सके, जिसके बारे में दिल्ली में मेरे सहयोगियों ने चेताया था, और वो मुझसे ज़्यादा अपने गाँव का नियमित सफ़र तय करते हैं ।
तो ये बैकग्राउंड था मेरे पटना वास का। और जैसा कि आमतौर पर होता है अपने गृहनगर में टूरिस्ट बन कर टहला।
और देखने की कोशिश की उस शहर को जो अब केवल गुज़रे वक़्त के परतों के नीचे नहीं छुपा था, कई और परतों के पीछे छुपा था।
देखिए पटना में इस बार मैंने क्या देखने की कोशिश की और पटना शहर कैसा दिखा।
पटना में दर्शनीय स्थल की क्या बात करें दुर्लभ दर्शनीय स्थल बहुत हो गए हैं। चारों ओर बड़े बड़े होर्डिंग ।
चारों ओर के कंस्ट्रक्शन को ढंकने का काम तो ये होर्डिंग कर ही रहे थे, पर पटना के बढ़ते ट्रैफ़िक और सिकुड़ती सड़कों को और क्लॉस्ट्रोफ़ोबिक बनाते हुए लगे।
बीच में मेरे बचपन का एक दर्शनीय स्थल दिख गया। पटना का वर्ल्ड फ़ेमस गोल घर।
मैं हर फ़ोटो तो नहीं खींच पाया, पर होर्डिंग की संख्या कुछ ज़्यादा ही थी।
ये तो वैसे भी खींच लिया। बहुत साल बाद इसे देखना, किसी परिचित से मिलना था। बहुत पुराना साइनबोर्ड ।
फिर शाम होने के बाद होर्डिंग और बोर्ड देखकर बोर हो गए तो हमारे साहबज़ादे ने कैमरे से क्रिएटीविटी शुरू कर दी। पटना की शाम में रौशनी की कलाबाज़ी ।
अब अगले सुबह के सफ़र की तैयारी थी।
Recent Comments