प्राइवेट जेट की उत्पत्ति ना होता तो नेताओं का मनमुटाव कैसे मिटता ?
क्या आप कभी प्राइवेट जेट में गए हैं ? छोटे जहाज़ में ? हवाई वाले जहाज़ में ? मैं कभी नहीं गया हूँ । लेकिन देखे बहुत हैं। फ़िल्मों में। फ़ेसबुक पर। चर्चा भी काफ़ी सुनी है। एक दो बार शूटिंग करने का मौक़ा बनते बनते रह गया है। आमतौर पर शाही एक्सपीरिएंस का एक स्टेटस अपडेट होता है वो। और हर शाही चीज़ की तरह इसे भी मैं आमतौर पर शक़ की नज़र से देखता था। कौतुहल का तत्त्व भी था ही। जिनके भी जीवन की शुरूआत मेरे जैसे समय में हुई हो जब समाज के लिए हवाई यात्रा एक ऐसा इंची-टेप था जिससे सफलता के एक-एक बारीक़ आयाम प्रतिमान नप जाते थे, योजना आयोग की तरह नहीं कि जनसंख्या की खुशहाली बत्तीस रुपया में नापें कि छत्तीस रुपया में, ये नापते नापते ख़ुद ही नप गए। अगर वो जेनरल मोटर्स, फ़ोर्ड और क्राइसलर के सीईओ को फ़ोलो करते तो अभी भी टिके रह सकते थे। नीति आयोग में मेटामोर्फ़ोसिस नहीं होता। सीईओ से सीखते कि ना सिर्फ़ सफलता, सफलता की अनंतता भी प्राइवेट जेट से ही प्राप्त होती है। आपको याद नहीं कि कैसे 2008 के ग्लोबल मेल्टडाउन के मौसम में जब बेलआउट की बयार बह रही थी, कंपनियां रिरिया रही थीं, जनता घिघिया रही थी, तब उसी जनता के पैसे से अपनी कंपनियां बचाने के लिए जेनरल मोटर्स, फ़ोर्ड और क्राइसलर के सीईओ ने कैसे सफ़र किया ? जी हाँ, प्राइवेट जेट में। कंपनी फ़ेल कर रही थी तो सीईओ की क्या ग़लती थी ? वो तो कर्मयोगी होते हैं, वो जानते हैं कि ग़लती हमेशा नीचे वालों की होती है, लेकिन उन्हें समाधान निकालने का श्रेष्ठ कर्म करना था। ऐसे संतों को पता होता है कि जनता का कष्ट दूर कैसे होगा, समाधान कैसे निकलेगा ? उन्हें पता होता है कि समाधान, इकॉनोमी क्लास या बिज़नेस या फ़र्स्ट क्लास से नहीं मिलते हैं। समाधान प्राइवेट जेट से ही निकलते हैं। उस वक़्त मैं उनकी इस उदात्त भावना को नहीं समझ पाया था। अब समझ के कह रहा हूँ कि यूएनडीपी को मानवता के विकास और प्रगति के लिए एक ही प्रतिमान रखना चाहिए, प्राइवेट जेट। मानवता को तब तक विकास करना चाहिए जब तक कि हरेक के पास प्राइवेट जेट ना हो। उसके बाद विकास के बटन को पॉज़ कर सकते हैं।
मेरी इस सर्वांगीण प्रस्तावना को मेरे वामपंथी मित्र ख़ारिज कर सकते हैं। सच कहूँ तो पहले उनकी सोच कर ही मैं बहुत कुछ मन में दबा कर रह जाता था। रामदेव के बिस्कुट के बारे में पूछ लिया था तो बहुत दुत्कारा था उन्होंने। लेकिन जब से जावेद अख़्तर साहब ने मुझे ब्रह्मवाक्य दिया है, मैंने जीवन को नए तरीक़े से देखा है। विचारक और द्रष्टा का काम ही यही होता है, वो विचार से उपकार करते हैं। जो जावेद साहब ने किया मेरे लिए। नसीर साहब ने बोल दिया कि राजेश खन्ना बिलो एवरेज एक्टर हैं और बवाल मच गया। व्यक्तिगत तौर पर इस बयान ने मेरे जीवन के कठिन दौर को और कठिन बना दिया।ऑनलाइन ऑर्डर किया जूता वैसे ही छोटा निकल गया था, कमबख़्तों ने ग्यारह नंबर पर बारह का स्टिकर लगा कर भेज दिया, इंटरनेट की स्पीड कम वैसे ही चल ही रही थी, मोबाइल का स्क्रीन कवर टूट गया थो सो अलग। इसी बीच में ऐसा धर्मसंकट। मेरे दो पूजनीय आमने सामने देख रहा था। ख़ैर उन दोनों से थोड़े कम पूजनीय जावेद साहब ने कह दिया कि नसीर साहब को सफल लोग पसंद नहीं। तो विचार कहीं और के लिए था और उपकार कहीं और हो गया। द्रष्टा का ये काम भी होता है। ख़ैर गुत्थी खुली, दो ऐक्टर के बीच में निजी असहमति के बीच से राजनैतिक कैनवस की व्यापकता का दिव्य अनुभव किया मैंने। मेरे और प्राइवेट जेट में असहमतियां थीं, जिसकी जड़ में मेरी जलन और इकॉनोमी क्लास में चलने की कुंठा हो सकती है।
उसी अंतर्दृष्टि ( जो अंग्रेज़ी शब्द इनसाइट का गूगल अनुवाद है) के बाद मैंने प्राइवेट जेट को नए नज़रिए से समझने के कोशिश की है। और महसूस किया कि प्राइवेट जेट विराट प्रजातंत्रिक स्तंभ है। बल्कि स्तंभ नहीं कोई बीम है, बल्कि लिंटर है। अगर प्राइवेट जेट नहीं होते प्रजातंत्र की इमारत इतनी मज़बूत कैसे होती? जेट ना होते तो नेता एक दूसरे से मिलते कैसे ? मान मनौव्वल कैसे होता ? सोचिए प्राइवेट जेट ना होते तो राजनीतिक परिवारों के मनमुटाव कैसे दूर होते ? भाई-भाई संवाद कैसे होते ? यूपी का समाधान दिल्ली में कैसे निकलता ? चोरी-छुपे रात में फ़्लाइटें ना उतरतीं तो गॉसिप कहां से आते ? या फिर आक़ाओं और राकाओं की मुलाक़ात कैसे होती ? किसका कौन फ़ेवरेट और फ़्लेवर है चर्चा भी नहीं हो पाती। हाईकमान और तीर कमान में बातचीत ना होती तो प्रजातंत्र के शॉकर की कमानी टूट जाती । प्राइवेट जेट नहीं होता तो बहुमत ऑक्सीजन मास्क लगाकर साबित होता ? प्राइवेट जेट नहीं होते तो अविश्वास से विश्वास प्रस्ताव तक की फ़्लाइट कैसे पकड़ते ? विश्वास का निःश्वास कैसे होता ? चुनाव प्रचार कैसे होता ? मीडिया को विज़ुअल कैसे मिलते ? ऑनबोर्ड इंटरव्यू कैसे होते ? पत्रकारों को विदेश जाकर क्रिकेट मैच का असल अनुभव कैसे मिलता ? वाइल्ड पार्टियां कैसे होतीं ? वहीं तो पीकर सब नेता सब बकते होंगे और ख़बरें निकलती होंगी ? तभी तो ख़बरें निकलती होंगी जिनसे सरोकार वाली पत्रकारिता करके सरकारों पर नकैल लगती होगी ? नेता लोग शादी ब्याह में प्राइवेट जेट से जाकर अपना क़ीमत वक़्त कैसे बचाते ? तत्काल में टिकट कटवाते ? या बोर्डिंग पास लेकर एयरपोर्ट धांगते रहते ? तो लब्बोलुआब ये है कि प्राइवेट जेट की उत्पत्ति दरअसल इसीलिए हुई है। जनता की सेवा करने के लिए।
समस्या ये है कि जनता को भी मेरे तरह अभी ज्ञान नहीं कि प्राइवेट जेट पूरे मानव कल्याण के लिए श्रेष्ठ कार्य कर रहा है। इतना श्रेष्ठ कि मानव और कल्याण दोनों को ही ये पता नहीं चल रहा है कि वो एक दूसरे से कितने क़रीब आ गए हैं। बहुत क़रीब। बहुत जल्द मानव और कल्याण के मिलन के शॉट पर फूलों के टकराने के शॉट को ओवरले करना पड़ेगा। लेकिन मुझे ये सब पता है। मुझे आभास हो चुका है। ऑनलाइन ठीक से जूते ना ख़रीद पाऊँ लेकिन मानवता के भविष्य को मैं देख सकता हूँ।
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