क्या नया मोटर वेह्किल एक्ट बचा पाएगा जानें ?
नाकाम रही कोशिशें ?
सड़क पर सुरक्षा को लेकर पिछले एक-दो साल में कई कैंपेन हमने देखे, कुछेक का तो मैं हिस्सा भी रहा। रोड सेफ़्टी को लेकर एक तरफ़ ग्राउंड ईवेंट हो रहे थे, डॉक्यूमेंट्री बना रहे थे, सड़कों-हाईवे पर ब्लाइंड और ख़तरनाक स्पॉट को हटाने के लिए काम शुरू हो चुका था, कई स्कूलों में बच्चों को सड़क सुरक्षा को लेकर नियम और ऐहतियात सिखाए जा रहे थे। कुल मिलाकर जैसी जागरुकता देखी उससे तो उम्मीद बढ़नी ही थी कि भारत की सड़कें कम जानलेवा होंगी, दुनिया में नंबर एक हत्यारी सड़कों का जो तमगा भारतीय सड़कों को मिला है वो चला जाएगा या कमसेकम 2014 के मुक़ाबले जानें तो कम जाएंगी। 2014 में भारतीय सड़कों पर लगभग 1 लाख 37 हज़ार लोगों की जान गई थी। लेकिन ये नहीं हुआ। कोशिशों का असर 2015 में तो नहीं दिखा। सड़कों पर मारे जानेवालों की संख्या बढ़ कर 1 लाख 46 हज़ार के आसपास चली गई। और फिर लगा कि शायद उम्मीद करना ग़लत था, क्योंकि कोशिशें तो हुईं लेकिन वो लौंग-टर्म कोशिशें थीं।भारतीय सड़कों के लिए कुछ पॉलिसी बदलाव की ज़रूरत थी जो 2015-16 में दिखे।
नए मोटर वेह्किल ऐक्ट में नया क्या ?
जीएसटी के हल्ले में सरकार ने ये भी ऐलान किया कि मोटर व्हेकिल ऐक्ट में बदलाव किया और इनमें जो बदलाव की जानकारी अभी तक आ रही है उससे लग रहा है कि ट्रैफ़िक नियमों का पालन तो बढ़ेगा। अब ट्रैफ़िक नियम तोड़ने पर भारी जुर्माने का प्रस्ताव है। जिनमें मौजूदा उल्लंघनों के लिए जुर्माने की रक़म तो बढ़ी ही है, कुछेक नए प्रस्ताव भी हैं। जैसे इमर्जेंसी गाड़ियों को रास्ता ना देने पर 10 हज़ार रु का जुर्माना । नाबालिग के गाड़ी चलाने के मामले में जुर्माने के साथ अभिभावकों के लिए तीन साल की जेल का भी प्रावधान है। हाल में बच्चों को गाड़ी चलाते जो हादसे हुए वो तो हमने देखा ही है। वहीं कई मौजूदा जुर्माने बढ़े हैं जैसे आम ट्रैफ़िक नियम के उल्लंघन के लिए पांच सौ रु का जुर्माना है, शराब पीकर गाड़ी चलाने पर 10 हजार रु जुर्माना, ‘हिट एंड रन’ मामलों में मुआवज़ा दो लाख रु तक प्रस्तावित है। ओवरस्पीडिंग के लिए 4 हज़ार रु तक का जुर्माना हो सकता है। और तो और बिना हेलमेट के बाइक चलाने पर दो हज़ार रु तक का जुर्माना हो सकता है।
केवल बड़े जुर्मानों से कुछ होगा ?
दिल्ली में क्यों बाइकर आमतौर पर हेलमेट पहन कर चलाते हैं, कार वाले सीटबेल्ट लगाकर कार चलाते हैं और महाराष्ट्र में क्यों हेलमेट को अनिवार्य करने पर हर बार बवाल मचता है ? क्यों मुंबई में ड्राइवर शराब पीकर गाड़ी चलाने में डरते हैं और क्यों पंजाब के हाईवे पर हरेक किलोमीटर पर एक शराब का ठेका धड़ल्ले से चल रहे हैं। जीहां नियमों की कड़ाई या ढिलाई से ज़्यादा बड़ा मुद्दा ट्रैफ़िक नियमों के एनफ़ोर्समेंट का है। जब तक पुलिस नियमों को कड़ाई से लागू ना करे कोई फ़ायदा नहीं होगा।
लेकिन घूसख़ोरी का क्या ?
नए प्रस्तावों से डर तो बढ़ेगा लोगों में लेकिन हम सबको पता है कि मेट्रो शहरों के बाहर ट्रैफ़िक नियमों का पालन कैसा होता है, कैसे सड़कों पर जंगलराज रहता है और सब ड्राइवर-राइडरों की मनमानी चलती है। कैसे लोग ज़रा से आलस में उल्टी ट्रैफ़िक में जाते हैं और क़ानून की धज्जियां उड़ाई जाती हैं। यहां पर ज़रूरत है कि एनफ़ोर्समेंट के लिए टेक्नॉलजी का इस्तेमाल हो। कैमरे लगाए जाएं। लोगों को लगे कि अगर ग़लती की तो उसकी सज़ा भी मिलेगी। मुझे टेक्नॉलजी का इस्तेमाल इसलिए भी ज़्यादा ज़रूरी लगता है क्योंकि मुझे डर है कि बड़े जुर्माने का एक अर्थ कहीं बड़ा घूस ना हो। नए जुर्मानों का मतलब चौराहों पर बढ़ी घूसख़ोरी ना हो। चार हज़ार वाली धारा लगा के हज़ार की उगाही ना हो जाए। ये जुर्माने बड़े शहरों के लिए तो ठीक हैं, जहां पर पुलिस-व्यवस्था में बहुत हद तक पारदर्शिता और जवाबदेही है, मीडिया की नज़र भी है, लेकिन सोचिए किसी छोटे शहरों और क़स्बों के चौराहे पर। ये सोचिए कि उनके लिए इस बदले मोटर वेह्किल ऐक्ट का क्या मतलब हो सकता है।
तो नियम तो पहले भी थे, आगे भी होंगे। जुर्माना पहले भी था, आगे भी होगा। पहले कम-आगे ज़्यादा लेकिन असल मुद्दा होगा कि कैसे इन नियमों को ईमानदारी और कड़ाई से लागू किया जाता है। तब बनेंगी हिंदुस्तानी सड़कें सुरक्षित।
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