गुड समैरिटन लॉ : क्या अब सही ट्रैक पर आ पाएगा रोड सेफ्टी का मिशन…?
दिल्ली के निर्भया रेप कांड में एक मुद्दा ऐसा था, जो मामले की जघन्यता के चलते पृष्ठभूमि में चला गया था… वह मुद्दा था, निर्भया के लिए दिल्ली वालों का बर्ताव… उन दिल्ली वालों का, जो उस रास्ते से गुज़र रहे थे, जहां बस से बाहर फेंकी गई निर्भया बेसुध पड़ी थी… वहां से गुज़रते लोगों के रवैये के बारे में तमाम व्याख्याएं हो जाएं, लेकिन सच्चाई यही रही कि किसी ने रुककर उसकी मदद नहीं की… वजहें तमाम दी जा सकती हैं, लेकिन सच यही है कि निर्भया को जल्द मदद मिल जाती, तो शायद कहानी कुछ अलग होती…
वैसे मुझे निर्भया का मामला सिर्फ आम लोगों के रुख़ के बारे में सोचकर याद आया… जब सड़क पर हम कुछ होते हुए देखते हैं, हम सभी के भीतर वह विरोधाभास होता है शायद… दो गाड़ियां एक दूसरे से टकरा गईं, रेलवे ट्रैक पर किसी ने जान दे दी, या कोई शोहदा छेड़ख़ानी करने की वजह से लड़की या लड़कियों से मार खा रहा है, तो हम सब रुककर देखने में कोई कोताही नहीं बरतते, लेकिन जब किसी हादसे में किसी को मदद की असल में ज़रूरत होती है, हम वहां से बहाना बनाकर निकल लेते हैं… इसके पीछे कई सामाजिक-मनोवैज्ञानिक कारण होते हैं, लेकिन एक क़ानूनी कारण भी होता है – पुलिस और अस्पताल के सवालों का झंझट… भले ही हमारे समाज में ज़िम्मेदारी से भागने वाले कायर लोगों की भरमार हो, लेकिन ऐसे लोगों की भी कमी नहीं, जो सिर्फ क़ानूनी अड़चनों की वजह से मुश्किल में पड़े लोगों की मदद करने से बचते हैं… लेकिन अब हो सकता है कि सुप्रीम कोर्ट के नए दिशानिर्देश आधी जानों को बचा लें…
गुड-समैरिटन लॉ…
हाल में सुप्रीम कोर्ट ने दिशानिर्देश दिए हैं कि सरकारें उस मैकेनिज़्म पर काम करें, जहां किसी भी दुर्घटना की सूरत में मदद करने वाले लोगों को किसी भी तरह के क़ानूनी पचड़े में न पड़ना पड़े… कोई भी राहगीर या चश्मदीद, जो दुर्घटना में शामिल की मदद के लिए आगे आता है, यानी गुड समैरिटन, यानी अच्छे नागरिक को कोई क़ानूनी दिक़्क़त न हो… कोर्ट ने कहा कि ऐसे किसी भी मददगार को – पुलिस या कोई और…
- उनकी पहचान बताने के लिए बाध्य नहीं कर सकते…
- उन्हें अस्पताल में नहीं रोक सकते…
- उन्हें सवाल-जवाब के लिए पुलिस स्टेशन नहीं ले जा सकते…
- उन्हें कोर्ट में गवाही के लिए नहीं बुला सकते…
- उन्हें समन भी नहीं भेज सकते…
अब इन निर्देशों के बाद जानकार मान रहे हैं कि स्थिति में बहुत हद तक सुधार आएगा और सड़क दुर्घटनाओं में मारे जाने वाले लोगों की संख्या में कमी आएगी… अब ऐसा क्यों माना जा रहा है…?
गोल्डन ऑवर…
असल में हर दुर्घटना के बाद का एक घंटा गोल्डन ऑवर माना जाता है, यानि घायल होने के बाद का एक घंटा किसी भी मरीज़ के लिए जीवन-मरण का सवाल होता है… ऐसे में अगर ज़्यादा से ज़्यादा लोगों की मदद के लिए लोग बेहिचक आगे आएं तो कमाल हो सकता है… अभी का आंकड़ा इस हिसाब से चौंकाने वाला है… एक अनुमान के मुताबिक भारतीय सड़कों पर मरने वालो में से 50 फीसदी लोग ऐसे होते हैं, जो अगर दुर्घटना के तुरंत बाद अस्पताल पहुंचा दिए जाते तो उनकी जान बच सकती थी… इस औसत से अगर जोड़ें तो मान सकते हैं कि यह संख्या 60,000 से ऊपर होती… अब यह आंकड़ा काफी बड़ा है… अगर जानकारों का अनुमान ठीक है तो गुड समैरिटन लॉ के आने के बाद देश में सड़कों पर हज़ारों जानें बचाई जा सकेंगी…
मोटर व्हीकल एक्ट…
वर्ष 2014 में जिस रोड सेफ्टी का हल्ला उठा था, वह तो नहीं आया… वह बिल अब आएगा भी नहीं, ऐसा पता चल रहा है… उसमें रोड सेफ्टी के व्यापक मुद्दे तो छुए गए थे, लेकिन शायद इसीलिए वह बहुत ज़्यादा व्यापक हो गया था… तो इन सबको देखते हुए कैबिनेट ने नया क़ानून न लाकर मौजूदा मोटर व्हीकल एक्ट में ही संशोधन किया है…
…तो इन सबके बाद अब लोगों के पास मदद न करने का बहाना भी नहीं है और सरकार के पास नियम-सज़ा दोनों हैं, अब उसे असल ज़िम्मेदारी निभानी है एन्फोर्समेंट की… बढ़े जुर्माने और साथ में सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी गुड समैरिटन लॉ पर निर्देश एक ऐसी बुनियाद बना रहे हैं, जहां देश की सड़कों को ज़्यादा सुरक्षित बनाती इमारत बन सकती है… गुंजाइश तो है, लेकिन सवाल सिर्फ एक है, वह यह कि आख़िर सरकार कितनी कुशलता से ये सभी नियम लागू करवा पाती है…
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