राहुल गाँधी पर बीजेपी नेताओं का उपकार और पिछले ब्लॉग को लेकर मेरी दुविधा…
कुल मिलाकर स्थिति ये बन गई है कि बीजेपी नेताओं ने यथास्थिति नहीं रहने दी है। राहुल गाँधी को राहुल गाँधी नहीं रहने दिया। पहले की तरह ऐसे ही आलोचना झेलते रहते, चुटकुले उनपर बनते रहते, मीम सोशल मीडिया पर वायरल होते रहते तो मैं भी निश्चिंत रहता । पुराना वाला ब्लॉग ही ऐप्लिकेबल रहता।
विचार बदलना मुश्किल काम होता है। दिमाग़ की चक्की में नई बातों को डालना पड़ता है, पुर्ज़ों में तेल डालते रहना पड़ता है कि चक्की चलती रहे। बातों को बारीक़ पीस कर विचार में तब्दील करती रहे। इससे ज़्यादा मुश्किल काम होता है धारणा बदलना। धारणा विचारों की बोरियों को एक पर एक रखने पर बनती हैं। इसी लिए धारणा बदलने के लिए ज़्यादा मेहनत करनी पड़ती है। बोरियों को एक एक कर उतारना चढ़ाना होता और उनकी प्लेसमेंट बदलनी पड़ती है। लेकिन ये काम बहुत मुश्किल होता है अगर आप बुद्धिजीवी हैं। आपके बुद्धि ने इतनी मेहनत से जिस धारणा तो तैयार किया था उससे मोह होना तो लाज़िमी है। लेकिन ज़्यादा मुश्किल होता है पत्रकारों के लिए। जिनकी हर धारणा पब्लिक स्पेस में जा चुकी होती है और उसके बदलने का मतलब हर पुरानी ट्वीट और लेखनी को लेकर सवाल जवाब करना । और फिर ईगो भी तो होता है । लेकिन मेरे साथ ये समस्या नहीं क्योंकि मेरे ऊपर बुद्धिजीवी या पत्रकार होने का कोई आरोप नहीं टिका है और यही वजह है मेरी दुविधा की। मैं सोच में पड़ा हूँ कि क्या मुझे अपने पिछले ब्लॉग का सीक्वेल लिखना पड़ेगा जिसमें राहुल गाँधी का नए सिरे से आकलन करना पड़ेगा।
अगर आप दुविधा में हैं कि मैं क्यों दुविधा में हूं तो ये वाला ब्लॉग पढ़िएगा।
( https://wp.me/p8rALv-2o )
इसमें मैंने राहुल गाँधी और अभिषेक बच्चन को आलोचना झेलने के मामले में युवाओं के लिए प्रेरक व्यक्तित्त्व होने का आरोप लगाया था। उस ब्लॉग के गूढ़ साहित्य को जिसने भी समझी हो उन्हें समझ में आएगा कि मैं कहना क्या चाहता हूँ। आख़िर उस ब्लॉग से इस ब्लॉग के बीच ऐसा क्या कुछ बदला है कि मैं धारणा बदलने के बारे में सोच रहा हूँ। तो उसका जवाब ये है कि उस और इस ब्लॉग के बीच कुछ चुनाव हुए हैं।कई राज्यों के चुनाव हुए हैं। जहां पर पॉलिटीशियन के तौर पर तो क्या तीर मारे गए हैं वो तो दिख ही गया हम लोगों को। गुजरात में हार ही गए। यूपी में दुर्गति ही हुई। उत्तराखंड। हिमाचल इत्यादि ही हो गए। नॉर्थ ईस्ट की तो बात ही क्या। लिस्ट तो ज़बर्दस्त लंबी है ही। अभी जब ब्लॉग टाइप कर रहा हूं तो स्थिति साफ़ नहीं कि कांग्रेस-जेडीएस की सरकार बनेगी कि नहीं लेकिन ये तो तय है कि कांग्रेस की सरकार तो गई।
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