नितिन गडकरी के बयान से क्यों भौंचक्की रह गईं कार कंपनियां ?
भारत में एक और सवाल है- “सभी नई कारें अगर इलेक्ट्रिक हो जाएंगी तो उसके लिए बिजली कहां से आएगी ? “
यहीं पर आए थे परिवहन मंत्री नितिन गडकरी। आने वाले वक़्त में ट्रांसपोर्टेशन, ईको-फ़्रेंडली कारों और भविष्य की टेक्नॉलजी को लेकर सरकार के पॉलिसी पर सरकार का रुख़ क्या रहने वाला है इस पर सबका ध्यान लगा था। पर परिवहन मंत्री का बयान सुनकर किसी की उत्सुकता शांत नहीं होने वाली थी, बल्कि सब सकपकाने वाले थे।
क्या कहा मंत्री नितिन गडकरी ने ?
अपनी बात की भूमिका बांधते हुए ही नितिन गडकरी ने मंच पर कह दिया कि वो जो कहने वाले थे वो कार कंपनियों को पसंद नहीं आने वाली है।
उनका संदेश ये था कि सरकार तो नई टेक्नॉलजी पर ज़ोर दे रही है, कंपनियां भी नई गाड़ियों के लिए रीसर्च शुरू कर दें। जो आने वाले वक़्त के लिए तैयार रहेगा वो साथ चलेगा, जो नहीं वो पीछे छूट जाएगा। गडकरी ने कहा कि गाड़ियों से फैलने वाला प्रदूषण और ट्रैफ़िक इतना हो जाता है कि हाईवे पर एक लेन बनाना पड़ता है। देश की पूंजी तेल के इंपोर्ट पर ख़र्च होती है। फिर उन्होंने जो बातें कहीं वो दूसरे दिन हेडलाइन बनी। उन्होंने कहा कि पेट्रोल-डीज़ल कारों को वो बुलडोज़ कर देंगे। पेट्रोल-डीज़ल कारों का वो बैंड-बाजा बजा देंगे।
कार कंपनियों और इंडस्ट्री की प्रतिक्रिया क्या थी ?
ACMA सम्मेलन के पूरे दूसरे दिन नितिन गडकरी के बयान की ही चर्चा हो रही थी। भले ही तय सेशन अलग मुद्दों पर हों पर स्टेज के नीचे सरकार के रुख़ पर ही चर्चा हो रही थी। तो मैंने भी इंडस्ट्री के नुमाइंदों से इस मुद्दे पर बातचीत की।
मारुति के चेयरमैन आरसी भार्गव का कहना था कि मंत्री की भाषा नहीं मक़सद पर ध्यान देने की ज़रूरत है। वैसे भी अभी इलेक्ट्रिक कारों के लिए डेडलाइन में 13 साल का वक़्त और है। दऱअसल ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल ने हाल में ये जानकारी दी थी कि सरकार की योजना ये है कि 2030 तक भारत में केवल इलेक्ट्रिक कारें ही बिकें, क्योंकि वही भविष्य है।
तो 13 साल बाद आनेवाले डेडलाइन के लिए नितिन गडकरी ने इतना कड़ा बयान क्यों दिया ? इसका एक जवाब सोसाइटी ऑफ़ इंडियन ऑटोमोटिव मैन्यूफ़ैक्चरर्स ने दिया ।
SIAM के डीजी विष्णु माथुर का कहना था कि सरकार कंपनियों को तैयार करना चाह रही है। पर उनकी एक चिंता ये भी थी कि पेट्रोल-डीज़ल से इलेक्ट्रिक कारों में ट्रांज़िशन के लिए वक़्त नहीं दिया गया तो इंडस्ट्री के लिए काफ़ी नुक़सानदेह होगा, नौकरियों पर असर पड़ेगा, जीडीपी पर असर पड़ेगा। अगर तेल इंपोर्ट करना बंद कर कार बैट्री इंपोर्ट करने लगे तो मेक इन इंडिया का क्या होगा ? कंपनियों को फ़िलहाल कई वैकल्पिक ईंधनों पर काम करना है, सुरक्षा के मापदंड कारों में लगाने हैं, नए एमिशन नॉर्म के लिए तैयार रहना है, ऐसे में कंपनियां सरकार से एक ही बात की मांग करती हैं कि सरकार एक ठोस रोडमैप दे। वो रोडमैप जो कार कंपनियों को अलग अलग तब्दीली के लिए टाइमलाइन दे। विज़न होना अलग बात है पर लक्ष्य हासिल करने के लिए रोडमैप ज़रूरी है।
एक उदाहरण ACMA के विनी मेहता ने दिया कि मौजूदा वर्कफ़ोर्स इलेक्ट्रिक कारों के लिए ट्रेंड ही नहीं है। ऐसे में उन्हें ट्रेन करके ही आगे बढ़ा जा सकता है।
एक अनुमान के मुताबिक कंपोनेंट बनाने वाली कंपनियों में से 40 फ़ीसदी इंजिन के पार्ट पुर्ज़े बनाती हैं।
इलेक्ट्रिक कारों का भारत में भविष्य क्या है, चुनौतियां क्या हैं ?
दुनिया भर में इलेक्ट्रिक कारों को लेकर सबसे आम सवाल हैं
– बैट्री का रेंज कितना है यानि एक चार्ज में कार चलती कितना है ?
– कार को चार्ज करने का इंफ़्रास्ट्रक्चर कैसा है ?
-कार को चार्ज करने में वक़्त कितना लगता है ?
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