लेह यात्रा पार्ट 2: खारदुंग-ला सबसे ऊँचा ?
( * शुरू में ही बता दूं कि हो सकता है आगे लिखी बातों के बारे में आपको पहले से जानकारी हो, लेकिन मुझे पता नहीं था। कभी ध्यान नहीं दिया था। वैसे जो हालत खार्दुंग ला की दिखती है उससे लगता है कि बहुतों को पता नहीं होगा।)
खारदुंग-ला। एक ऐसा नाम जो जून-जुलाई-अगस्त में इंडिया में वर्ल्ड-फ़ेमस हो जाता है। वो नाम जिसकी चर्चा से सोशल मीडिया अंट जाता है, वो जगह जहां कि फ़ोटो से कंप्यूटर-मोबाइल फ़ोन का मदर बोर्ड चट जाता है और नेटवर्कों के सर्वर बैठ जाते हैं। वो रास्ता जिसे दुनिया का सबसे ऊंचा मोटरेबल पास बताया जाता है, वो है खारदुंग-ला। अगर लद्दाख़ गए तो खारदुंग-ला तो जाना ही है, किसी भी आर्टिकल में ‘मस्ट सी‘ सबसे पहले वही होगा। इसी सोच के तहत मुझ जैसे ढेरों टूरिस्टों ने खारदुंग-ला को करोल बाग मार्केट मे तब्दील कर दिया था। वहां पर खारदुंग-ला की ऊँचाई लिखे बोर्ड के सामने खड़े होकर फ़ोटो खिंचाने के लिए भीड़ जमा थी और इस विश्वप्रसिद्ध बोर्ड यानि निशान के साथ अकेले फ़ोटो खिंचाना मुहाल था। वो तो ग़नीमत है कि ऑक्सीजन की सप्लाई वहां थोड़ी कम है, ज़्यादा उत्साहित होने पर माथा घूमने लगता और थोड़े मोबाईल नेटवर्क की दरिद्रा है, नहीं तो वहीं से खड़े होकर घंटे भर फ़ेसबुक लाइव या फ़ेसटाइम देख सकते थे। कसर हालांकि कोई छोड़ी गई थी, वहां पर भी, यानि सवा अठारह हज़ार फ़ीट (या साढ़े सत्रह हज़ार फ़ीट जैसा कि आगे बताउंगा) की ऊँचाई पर भी एक वीआईपी लोगों की टोलियां दिख ही गईं। उस वीआईपी से साथ चल रहे बंदूकधारियों ने खारदुंग-ला पर फ़ोटो खिंचाने वाले लोगों को किनारे किया जिससे कि वो वीआईपी फ़ोटो खिंचवा सके। हम लोग जो भी मुहिम चलाएं वीआईपी कल्चर के ख़िलाफ़, अपने डीएनए में वो ऐसा घुसा है कि जहां मीडिया और कैमरे से दूर जाते हैं जितने मंत्री हो या संतरी सब अंग्रेज़ बहादुर लाट साहब बन जाते हैं। ख़ैर।
जिस वजह से लिखना शुरू किया था उस पर तो आया ही नहीं। दरअसल दुनिया भर में हल्ला करने के बाद, फ़ेसबुक के टाइमलाइन रंगने के बाद, इतने साल के बाद पता लगा कि खारदुंग-ला तो दुनिया का सबसे ऊँचा मोटरेबल पास है ही नहीं। अगर इंटरनेट देखें तो पता चलेगा कि दुनिया भर मे सबसे ऊंचे पास में से खारदुंग-ला अब दसवें नंबर पर आता है। ये जानकारी स्थानीय लोगों ने भी दी। उन्होंने बताया कि पता नहीं ये टूरिस्ट ख़ाली खारदुंग-ला के लिए क्यों दीवाने रहते हैं, उससे तो ऊंची सड़कें भी हैं दुनिया भर में। दुनिया छोड़िए, लद्दाख़ में ही उससे ऊंचा पास है । तब मुझे याद आया था कि 2005 में मैं जब पहली बार लद्दाख़ गया था तब भी वहां पर लोग बता रहे थे कि खारदुंग-ला सबसे ऊंचा मोटरेबल रोड इसलिए बताया जा रहा है क्योंकि वहां पर सभी गाड़ियां जा सकती हैं, बाक़ी कई पास ऐसे हैं जो उससे ऊँचे हैं लेकिन आम गाड़ियों का जाना मुश्किल है। तब मैंने पहली बार नाम सुना था मार्सिमिक-ला का।
दरअसल अब तो कई लोग बताते हैं कि खारदुंग-ला की जो ऊंचाई वहां लिखी हुई है वो दरअसल सही नहीं है, अब जो जीपीएस मशीनें आ गई हैं और जो लोग-बाइकर्स लेकर यात्रा पर चलने लगे हैं उसके हिसाब से खारदुंग-ला पास की ऊँचाई 18300 फ़ीट के आसपास नही हैं, असल ऊँचाई साढ़े सत्रह हज़ार फ़ीट के आसपास है। यही नहीं लद्दाख़ में ही इससे ऊँचा पास है जैसे मार्सिमिक-ला। अब मुश्किल ये है कि वहां पर रास्ता ऐसा है जहां हर इंसान जा नहीं सकता, हर गाड़ी जा नहीं सकती और जाने के लिए परमिट चाहिए होता है। ऐसे में वो बहुत चर्चित जगह नहीं होगी। ऊपर से वो चीन सीमा के काफ़ी नज़दीक भी है, तो आमलोगों की आवाजाही कम ही होती है।
दुनिया में सबसे ऊँचे मोटरेबल रोड की लिस्ट में भी खारदुंग-ला का नंबर काफ़ी नीचे है। पहले नंबर पर बताया जाता है बॉलिविया की युतुरुंकू ( Uturuncu) नाम की जगह जाने वाली सड़क को. फिर भारत में ही माना पास को भी साढ़े अठारह हज़ार फ़ीट के आसपास की ऊँचाई बताई जा रही है। वो उत्तराखंड में है। वहीं लद्दाख़ की ही बात करें तो मार्सिमिक-ला के अलावा कई और पास हैं, जो वैसे ही ऊँचे हैं जैसे फोटी-ला, दोंखा-ला, कक्संग-ला, चांग-ला, तांगलंग-ला, वारी-ला। सबकी ऊँचाई 17-18 हज़ार फ़ीट के आसपास ।
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