हिंदुस्तानी ग्राहक कार ख़रीद का फ़ैसला कैसे करते हैं और इस कार के लिए कैसे किया ?
गाड़ियों की ख़रीद आईपीएल टूर्नामेंट जैसी होती है, जहाँ फ़ाइनल मैच से पहले पता नहीं कितने सेमी फ़ाइनल, क्वार्टर फ़ाइनल और अद्धा फ़ाइनल खेले जाते हैं। टीवी प्रोग्राम में गाड़ियों की जानकारी छान-छान कर डिश का तार घिस दिया जाता है, यूट्यूब पर रिव्यू देख-देखकर प्रशांत महासागर में इंटरनेट के केबल को हिला दिया जाता है। परिवार, पड़ोसी, मेकैनिक के माउथ से वर्ड निकाला जाता है। वहाँ से बात नहीं बनती को पार्किंग वाले से भी पूछ लिया जाता है कि कौन सी कार ज़्यादा टंगा कर आती या जाती है।
हिंदुस्तानी ग्राहक एक जूते का फीता भी ख़रीदते हैं तो सोसाइटी के वाचमैन से लेकर अपने फ़ैमिली डॉक्टर तक से सलाह ले लेते हैं कि कौन से ब्रांड का ख़रीदा जाए। कौन से मार्केट में पौने सात रुपए की छूट मिल सकती है .. तो ऐसे में गाड़ियाँ तो बड़ी चीज़ है। लाखों का वारा न्यारा होता है। पहले के ज़माने में पीएफ़ का पूरा पैसा लग जाता था आजकल बैंक का इंटरेस्ट रेट रहता है। ऐसे में कोई गाड़ियों की ख़रीद आईपीएल टूर्नामेंट जैसी होती है, जहाँ फ़ाइनल मैच से पहले पता नहीं कितने सेमी फ़ाइनल, क्वार्टर फ़ाइनल और अद्धा फ़ाइनल खेले जाते हैं। ख़ाली ओपनिंग सेरेमनी दिखती है और फिर फ़ाइनल मैच। ख़ैर कार ख़रीदने का फ़ैसला भी इतने ही प्रोसेस और राउंड से गुज़रता है। टीवी प्रोग्राम में गाड़ियों की जानकारी छान-छान कर डिश का तार घिस दिया जाता है, यूट्यूब पर रिव्यू देख-देखकर प्रशांत महासागर में इंटरनेट के केबल को हिला दिया जाता है। फिर बारी आती है अपनों की। परिवार, पड़ोसी, मेकैनिक के माउथ से वर्ड निकाला जाता है। वहाँ से बात नहीं बनती को पार्किंग वाले से भी पूछ लिया जाता है कि कौन सी कार ज़्यादा टंगा कर आती या जाती है। तो ऐसे देश में बहुत वक़्त के बाद एक ऐसी कार आई जिसे लेकर मुझे पहले दिन से ही लग रहा था कि शायद ही कोई इसके रिव्यू का इंतज़ार कर रहा होगा। एक ऐसी कार जो पहले ही एक महीने में पंद्रह हज़ार से ज़्यादा बिक रही है, 9 साल में 14 लाख के आसपास जो कार बिक चुकी हो, वो जब नए और बेहतर अवतार में आई हो तो कोई वजह नहीं है कि ग्राहक शक करेंगे या इस पर सेकेंड ओपिनियन लेंगे।
मारुति की नई डिज़ायर की ये कहानी है। जिसे चलाने के लिए, टेस्ट ड्राइव के लिए जब मैं गोवा पहुँचा था तो उससे पहले ही चालीस हज़ार से ज़्यादा डिज़ायर कारों की बुकिंग मारुति के पास पहुँच चुकी थी। टेस्ट ड्राइव ख़त्म करके वापस आया तो सुना कि 44 हज़ार बुकिंग हो चुकी थी। हालांकि ज़रूरी नहीं कि जो बुकिंग कराई गई हो वो सभी कार ख़रीदने पहुँचेंगे ही। पर ये तो तय था कि ये वो कार थी जिसके बारे में ग्राहकों में कोई ऐसी शंका या सवाल नहीं था जिसके निदान के बाद वो ख़रीदने की सोचते । कार नई प्लैटफ़ॉर्म पर तैयार हुई है, लुक पूरा नया किया गया है, पहले से ख़ूबसूरत है, बाहर से भी अंदर से भी। क़ीमत में भी इज़ाफ़ा नहीं किया गया। ऐसे में टेस्ट ड्राइव से पहले ही लोगों की प्रतिक्रिया ऐसी मिल रही थी कि उन्हें इससे मतलब ही नहीं था कि कार चलती कैसी है। लोगों को लेकर कैसी चलेगी .. दोनों इंजिन विकल्पों के साथ लगे ऑटो गियर शिफ़्ट यानि ऑटोमैटिक ट्रांसमिशन के अलावा कोई ऐसा पहलू नहीं था जिसको लेकर अलग से सवाल आया हो। ये वो टेस्ट ड्राइव था जिसके रिपोर्ट का इंतज़ार शायद बहुत कम को था।
हाल में बहुत कम गाड़ियों को लेकर मुझे ऐसा महसूस हुआ था कि सवाल और शंकाएं बहुत कम भेज रहे थे। जिसे ख़रीदने के लिए लोग आश्वस्त ही थी। उन गाड़ियों के लिए सेकेंड ओपिनियन की ज़रूरत होगी या नहीं। ऐसी दो गाड़ियाँ थीं जिन्हें लोगों ने पहले ही ख़रीदने का मन बना लिया था, रिलीज़ होने से पहले ही इन दोनों फ़िल्मों को ब्लॉकबस्टर बता दिया गया था। टोयोटा की इनोवा और फ़ॉर्चूनर को देखकर यही लग रहा था कि एक सुपरहिट प्रोडक्ट में कंपनी क्या कुछ ग़लत कर सकती है। नया वर्ज़न भी हिट ही होगा। पर वहाँ भी टोयोटा ने अतिउत्साह या कांफिडेंस में क़ीमतों को इतना बढ़ा दिया कि ग्राहकों को थोड़ा तो सोचने पर मजबूर कर ही दिया। क्रिस्टा के तौर पर टोयोटा ने इनोवा को तो एक अलग ही कैटगरी में डाल दिया था, वहीं फ़ोर्ड ने अपनी नई एंडेवर की क़ीमतों को कम रखकर शायद फॉर्चूनर के ग्राहकों को थोड़ी दुविधा में डाल दिया था। पर डिज़ायर में ऐसा कुछ नहीं था। क़ीमत भी पुराने वर्ज़न के बराबर ही रखी थी।
तो ऐसे में मेरे लिए ये कहना कि नब्बे-सौ की रफ़्तार के बाद इसके पेट्रोल अवतार की हैंडलिंग में और बेहतरी हो सकती थी। बल्कि इंजिन में भी बेहतरी हो सकती थी। डीज़व वर्ज़न में ऑटोमैटिक भी मज़ेदार नहीं लगा। पर कारों का प्रदर्शन तो सेगमेंट की बाक़ी गाड़ियों की तुलना में रेलेटिव माना जाता है। तो ऐसे में एक औसत प्रदर्शन के साथ अगर अच्छी माइलेज मिल रही हो तो फिर क्या शिकायत की जाए। तो फ़िलहाल ये चर्चा रहने देता हूँ कि अब इसके पेट्रोल इंजिन को थोड़ा नया करने की ज़रूरत है। बाक़ी गाड़ी में कोई कमी नहीं लगेगी, जिस सेगमेंट-क़ीमत में ये आई है। तो बाक़ी आप लोग फ़ैसला कर ही चुके हैं, ऐसे में एक कमी-बेसी का ज़िक्र करना ही है तो कर ही देता हूँ, कार का ऐड पसंद नहीं आया, इस कार की क्वालिटी से उन्रीस नहीं अठारह लगा।
सेडान कार लेना है बजट 15 16 लाख है पेट्रोल वर्जन लेना है आटोमेटिक या मैन्युअल लेना चाहिए