सीसीटीवी के गणतंत्र में बकासुर बना सोशल मीडिया
इस बार एक माँ अपने छोटे दुधमुँहे बच्चे को मारती हुई सीसीटीवी में क़ैद हुई है। सिर्फ़ मारती नहीं है, उसे गले से पकड़ कर झुलाती भी है। लगा जैसे गला घोंटने वाली हो। बिस्तर पर पटकती है। फिर थप्पड़ चलाती है। दृश्य दहशत पैदा करते हैं। किसी मासूम के साथ ऐसा व्यवहार किसी के दिल को पिघला सकता है। अगर आप ख़ुद भी माता या पिता हैं तो फिर इस ये दृश्य आंसू निकालने वाला हो सकता है। बच्चा डेढ़ साल का है। पुलिस ने मामला भी दर्ज किया है। पता नहीं कैसी माँ है। मानसिक रोगी तो नहीं। लेकिन वो एंगिल बाद में। इंसानियत की मौत हो गई ये बताया गया।
एक और फुटेज दिखा। एक साइकिल सवार सड़क पर जा रहा है। बंगाल के किसी सड़क पर। ट्रक पीछे पीछे चल रहा है । फिर उस साइकिल वाले को कुचल देता है। लोग उस साइकिल सवार को घेर कर खड़े हैं। पुलिस आई । लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। हस्पतालों के दरम्यान वो साइकिल सवार इंसान ने आख़िरी सांस ले ली थी। देश में लाख से ऊपर ऐसी त्रासदी होती है लेकन फिर समस्या ये है कि सीसीटीवी तो होता नहीं तो ये तय हुआ कि हावड़ा में इसी दुर्धटना के साथ इंसानियत का अवसान तय होगा।
एक फुटेज बता रहा है कि कुछ लड़कों में लड़ाई हो रही है। इसके पीछे वजह गोलगप्पे बताए जा रहे हैं। पता नहीं गोलगप्पे खाने को लेकर लड़ाई थी या ना खाने की वजह से। फिर पता चला कि एक जान चली गई गोलगप्पा पहले कौन खाएगा के सवाल पर। हिंसा रोचक लग रही है, लेकन एंगिल अच्छा नहीं। फ़ुटेज की क्वालिटी भी बहुत अच्छी नहीं लग रही है। इसलिए ये अतिशयोक्ति कि इंसानियत भी गोलगप्पे के साथ एसिड वाले खट्टे पानी में गल गई।
इंसानियत तिपहिया के नीचे भी गई थी। जहां कंट्रोल से बाहर एक टेंपो एक इंसान को कुचलता है। फिर वो टेंपो वाला अपनी गाड़ी रोकता है। निकल कर आता है। दो क़दम उस शख़्स की तरफ़ बढ़ाता है जिसे उसने कुचला है। उसकी तरफ़ देखता भर है। ना तो उस ड्राइवर में कोई हड़बड़ी दिख रही है, ना वो बौखलाया दिख रहा है। वो बीच में रुककर वापस घूम जाता है। अपने टेंपो की तरफ़ देखता है। कहीं कोई डेंट या स्क्रैच तो नहीं । सड़क पर पड़े शख़्स की सांसे चल रही हैं या नहीं ये भी नहीं जांचता है। फिर अपने टेंपो को देखकर इत्मिनान होकर चला जाता है। फिर थोड़ी देर बाद एक रिक्शावाला आता है। वो उस शख़्स का रुख़ करता है जो सड़क किनारे पड़ा था। वो रिक्शावाला आगे आता है, गिरे शख़्स का मोबाइल फ़ोन उठा कर चला जाता है। इंसानियत धरती से उठ चुकने का ऐलान हो चुका है।
एक शख़्स कंधे पर एक बड़ा सा पुलिंदा लेकर जा रहा है। साथ में एक लड़की सुबकती चली जा रही है। सुना गया कि इंसानियत ने दम तोड़ दिया है और उसी इंसानियत की लाश लिए वो आदमी दस किलोमीटर तक चलता है। साथ में सुबकने वाली लड़की उस शख़्स की बेटी बताई जाती है। दस किलोमीटर तक कंधे पर लटके हुए चलने के बाद इंसानियत की लाश की गंध हुक्मरानों तक पहुँची, जिसके बाद विज्ञप्ति आई कि वो गंध दरअसल लाश ढोने वाले शख़्स के मुँह से आ रही थी । इंसानियत के बुलेटिन में ये भी ख़बर भी हेडलाइन बनी है।
इनमें से कुछ भी पहली बार नहीं हुआ है। आख़िरी बार भी नहीं हुआ है। आगे भी होता रहेगा। ये सीसीटीवी गणतंत्र है और सोशल मीडिया का बकासुर । जिसे रोज़ ख़ुराक चाहिए। किसी ना किसी की बलि ज़रूरी है। हर रोज़ आहत होना हमारी मजबूरी है। आहत होने का अपना नशा है। अब इस शगल के लिए इंसानियत को तो डेली मरना ही पड़ेगा। हर रोज़ इंसानियत की हत्याओं का कलेक्शन हो रहा है। इंसानियत रक्तबीज है, रोज़ मरने के लिए फिर से ज़िंदा होती है।रिन्यूएबल एनर्जी है। रीसाइकिल होती है।
संवेदनाओं को सेंट्रलाइज़ किया गया है।मनुष्यता की चुनौतियों को इस टाइमलाइन पर रेंड करना ज़रूरी है। इसके लिए सीसीटीवी फ़ुटेज मनुष्यता का सबसे ठोस प्रमाण है। जिसमें हुई मौत ही मौत है, जिसमें दिखी निर्ममता ही है समाज के लिए चुनौती है, जिसके लेंस से बाहर की मौत फ़ालतू है, व्यर्थ की चिंता है। सीसीटीवी के लेंस ने ही अब मौत को एक बड़ा कैनवस दिया है। इंसान का मरना नगण्य है, डाउन मार्केट है, लो व्यूअरशिप है, सोशल मीडिया पर ट्रैक्शन नहीं मिलता है। अब इंसानियत से नीचे की हत्या वायरल कैटगरी में आ ही नहीं सकती। इंसान एक निमत्त मात्र है, सीसीटीवी फ़ुटेज में विज़ुअल प्रूफ़ बनाने वाले किरदार के तौर पर। सीसीटीवी की सत्ता में इंसान को अपनी हैसियत समझनी होगी।
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