एकांकी : ये कैसा यज्ञ, ये कैसी आहुति जजमान ।
सबकी आँख पनियाई हुई है। सब ढों-ढों करके खांस रहे हैं। तीन-चार निपट लिए हैं, फर्श पर लोट रहे हैं। महिलाएं साड़ी से मुँह ढंक कर आँख मूंद कर बैठ गई हैं। पुरुषों के पास नाक ढंकने के लिए रुमाल नहीं और धोती भी छोटी पड़ रही है महराज। वीभत्स सा दृश्य है, एक तरफ़ ढंक रहे हैं तो दूसरी तरफ उघड़ रहा है। कुछ तो बेहोश ही होने वाले हैं। बच्चे किकिया रहे हैं, सो अलग। आँख मूंद कर प्रसाद की खोज में भागते-भागते टकरा जा रहे हैं। पंडितजी रिरिया रहे हैं।
“ये कैसी लकड़ी ले आए हैं जजमान, इतना महान यज्ञ और ऐसी लकड़ी ? लकड़ी तो सूखी ले आते। धुँआ ने देखिए बाप-बाप करा दिया है सबका। चार लोग को अस्थमा धर लिया है, ऊपर की साँस ऊपर, नीचे की साँस नीचे।पांच की पुतली पलट गई है”
“अरे जब मूहर्त निकल गई थी तो लकड़ी कच्ची हो या सूखी इससे क्या मतलब ?“
“मतलब प्राणांत तो नहीं होता ऐसे शुभ अवसर पर।”
“कुछ नहीं होगा, पचास दिन में आँख और फेफड़ा वापस उग जाएगा। फिर लकड़ी तो देखिए पंडित जी, क्या शानदार फ़िनिशिंग।”
“पर जजमान ऐसी फिनिशिंग का क्या करें जो सबको फ़िनिश ही कर दे ? ”
“काहे को आप इतना स्ट्रेस लेते हैं पंडित जी, इतिहास में प्रथम बार इस लकड़ी का इस्तेमाल कर रहा है कोई शासक, फ़र्स्ट टाईम। एक नंबर का मटीरियल लाए हैं हम।”
“एक नंबर का ? चार सौ बीस नंबर का घी लाए हैं और कह रहे हैं एक नंबर का ? अग्नि में देते देते मुँह झरक गया है जजमान। घी है कि गनपाउडर। वो तो आपका पेमेंट ऐसा है, नहीं तो मजाल है कि पंडिताइन इतना रिस्क लेने देती ? “
“आप समझ क्यों नहीं रहे हैं कि देश निर्माण के लिए किस बड़े अनुष्ठान का आप आज हिस्सा बने हैं ? आपको पता है कि इतिहास में दो-तीन ही ऐसे यज्ञ हुए हैं। अमेरिका नरेश ने किया था, फिर फ्रांस के नरेश ने और अब हम।आप देखिए कि यज्ञ में आहुति देने के लिए लोग कितने व्यग्र हैं, बत्तीसी खिली हुई है। रात रात भर महल के बाहर खड़े थे। कई लोग तो दो-दो दिन से। कुछ तो बोरिया-बिस्तर लेकर ही आ गए थे। मार मची है पंडित।”
“सुना है जो नहीं आ पाए थे वो चिट लगा कर अपना खड़ाऊं भी भेजे थे सरकार। “
“ और क्या, उत्साह तो बहुत के बहुत है। सब पंक्तिबद्द आनंदित हैं। चेहरे खिले थे। कुछ प्रतिबंधित संगठनों ने कीर्तन-कव्वाली की भी व्यवस्था की है आम जनों के लिए लिए। देखिए महिलाएं कैसे मंगल गीत गा रही थीं। अद्भुत दृश्य है।”
“ पर सरकार कुछ हेयर स्टाइलिस्ट बता रहे हैं कि कुछ बत्तीसी नहीं एक दूसरे पर खिसिया रहे थे। सुने कि गाना-बजाना दरअसल रूदन था। वो तो ये भी बोल रहे थे कि आमजन लमलेट हो गए हैं, कुछ बिलेटेड ? कुछ का बता रहे थे कि लास्ट स्टेज पर हैं।”
“बंद कराता हूँ गद्दारों का सलून मैं।”
“पर महराज कुछ तैयारी तो कर लेते यज्ञ से पहले ? अनर्थ ना हो जाए, सरकार”
“कोई बात नहीं, राजधर्म में ये कहां नोटीफ़ाई हुआ है है कि आम जन के मारे जाने पर पाप का भागी कौन होता है ? याद नहीं चित्रलेखा ने क्या कहा था ?”
“क्या सरकार, जल्दी बताइए, फेफड़ा जवाब दे रहा है”
“ये पाप है क्या , ये पुण्य है क्या…”
“पर वो तो किसी और कौन्टेक्स्ट में था”
“कोई बात नहीं, मैंने पता करवाया है, इनका वाला टैक्स स्लैब, पाप-पुण्य कैटगरी में फ़ॉल नहीं करता है, दो चार निपट लिए तो बलिप्रदान माना जाएगा।”
“पर ऐसे टूटे-फूटे बकरों के बलिप्रदान से यज्ञ कलंकित हो जाएगा, सरकार । ना तो मोक्ष की प्राप्ति होगी महराज ना अमरत्व की। डू समथिंग फास्ट।आपके पता है ना आजकल हर लाश का बैकलैश होता है जजमान। ”
“पंडित तुम ना देशद्रोही टाइप मत बात करो।”
Recent Comments