तो बलीनो RS की ड्राइव के वक़्त मेरा हार्ट-रेट क्यों नहीं बढ़ा ?
इस सवाल का जन्म हुआ था उस फ़िटनेस बैंड के साथ जो सुबह सुबह मेरी कलाई पर बाँधा गया था। जब मैं पहुँचा था दिल्ली से सटे ग्रेटर नौएडा के एफ़ 1 ट्रैक यानि बुद्ध इंटरनैशनल ट्रैक पर। इस ट्रैक पर फिर से फ़ॉर्मूला रेस देखने की हसरत तो पूरी हो नहीं रही, ख़ुद ड्राइव करने की हसरत ने सुबह-सुबह सूरज उगने से पहले अपन पहुँच गए। अब बीआईसी रेसट्रैक कोई नौएडा-ग्रेटर नौएडा एक्सप्रेस्वे तो है नहीं कि इसके बनने से लेकर आजतक एक-एक इंच को शूट करके मैंने ऐतिहासिक बनाया हो और याद ही ना हो कि कितनी कारों-मोटरसाइकिलों को वहाँ भगाया है। बीआईसी पर तो मैंने चुनिंदा कारों और मोटरसाइकिलों को ही दौड़ाया था, इसलिए थोड़ा अंदाज़ा था कि यहाँ पर ज़्यादातर जर्मन कारों को या ज़्यादातर जापानी मोटरसाइकिलों को ही चलाया है। और याद तो यही है कि उन कारों की लिस्ट में मारुति की कोई कार नहीं थी। और पहली बार बीआईसी पर मारुति की किसी कार को चलाने के लिए मैं पहुँचा था।
तो पैसा वसूल कार बनाने वाली कंपनी ने जब अपने पोर्टफ़ोलियो को नया करने की सोची तो उसे सही तरीक़े से समझाने के लिए कंपनी ने माहौल भी वैसा ही रखने की सोची। रफ़्तारप्रेमियों के लिए बनी कार बलीनो RS और उसे टेस्ट करने के लिए पहुँचे फ़ॉर्मूला वन ट्रैक पर। और क्या ये कांबिनेशन रोमांचक था या नहीं, यही मापने के लिए यानि हार्ट-रेट को मापने के लिए फ़िटनेस बैंड लगाया गया था।
फिर मैं जब बलीनो को लेकर बीआईसी पर भागा तो शुरूआत में तो काफ़ी संभल कर चलाना था, जैसा कि बताया गया था, हमारे आगे लीड कार चल रही थी, जिसके पीछे एक राउंड मार कर सभी को ट्रैक और नई कार से परिचय करना था। तो उसमें हम सभी एक लाइन में जा रहे थे। बाद में हम सभी को अलग से कार भगाने का मौक़ा मिला।
आमतौर पर रेसट्रैक ऐसी जगह होती है जहाँ पर अच्छी से अच्छी कारें भी एक्सपोज़ हो जाती है। कंपनी दावे कैसे भी करे लेकिन मुश्किल मोड़ पर कार की पकड़ और संतुलन के अलावा इंजिन में दम है कि नहीं ये रेस ट्रैक पर बहुत साफ़ हो जाता है। ऐसे में भले ही कंपनियां एक से एक स्पोर्टी कार बनाने का दावा करें, रेसट्रैक पर पता चल जाता है कि वो वाकई स्पोर्टी हैं या नहीं। पर मारुति को अपनी इस नई बलीनो आर एस पर भरोसा है इसीलिए कार के साथ हमें काफ़ी वक़्त दिया गया इन्हें भगाने के लिए। और बलीनो आर एस ने निराश भी नहीं किया। ख़ासकर जिस क़ीमत में, जिस आकार के इंजिन और साथ में जिस माइलेज के दावे के साथ ये आ रही है। बलीनो की एक्स शोरूम क़ीमत लगभग पौने नौ लाख रु की है, इसमें लगा है टर्बो चार्ज्ड पेट्रोल इंजिन जिसकी क्षमता सिर्फ़ एक लीटर की है और इन सबके साथ टेस्ट माइलेज 21 किमीप्रतिलीटर से ज़्यादा बताया गया है।
तो इन आंकड़ों के साथ मैंने कार को भगाया तो मज़ा भी आया। नए इंजिन के अलावा कंपनी ने कार के सस्पेंशन को भी बेहतर किया है, जो काफ़ी ठोस ड्राइव देता है। बॉडी रोल भी महसूस होता है और एक वक़्त के बाद लगता है कि इंजिन और बड़ा होता तो कार और रोमांचक होती, पर ये ज़रूर कहूँगा कि इसका टर्बोचार्जर काफ़ी स्मूद तरीक़े से रफ़्तार को बढ़ाता है। ऐसा नहीं कि टर्बो की ताक़त आने मे वक़्त लगे, जिसे आमतौर पर आपने टर्बो लैग के नाम से सुना होगा। तो इन सभी पहलुओं के साथ भी ड्राइव रोमांचक है। रेस ट्रैक पर पकड़ के साथ चली, कई बार इसने और तेज़ जाने के लिए ललकारा और जब मैंने पुश किया तो मज़े से भागी भी। कई बार मैंने ज़्यादा ऐक्सिलिरेट किया, गियर बदलने में अटपटाया पर एंड रिज़ल्ट मज़ेदार रहा।
ख़ैर जब इस ड्राइव के बाद पिट लेन में आया तो पता चला कि हर ड्राइवर के लिए ड्राइव कितनी रोमांचक रही ये बताने वाली एक तस्वीर थी। दरअसल ट्रैक के अलग अलग हिस्से से फ़िटनेस बैंड की रीडिंग कंप्यूटर में जा रही थी और पता चल रहा था कि ड्राइवर के दिल की धड़कन कितनी बढ़ी या घटी यानि ड्राइव रोमांचक रही कि नहीं। जो ग्राफ़ पहले लगे थे उनके हिसाब से तो मेरे कुछ पत्रकार मित्रों की हार्ट-बीट सवा सौ बीट्स पर मिनट तक गई थी। आम तौर पर सवा सौ ही औसत लग रहा था। फिर कुछ देर के बाद मेरे आंकड़े को कंप्यूटर ने पढ़ कर निकाला तो मैं चौंक गया। औसत 98 का निकला। यानि ये ड्राइव मेरे दिमाग़ को तो रोमांचक लगी हो पर लगता है मेरे दिल को नहीं।
तो जैसा कि आंकड़ों के साथ आमतौर पर होता है, एक से एक एनैलिसिस होने लगता है। तो मैं भी करने लगा। पहला तो ये लगा कि शायद कार वाकई इतनी रोमांचक नहीं थी जितनी लग रही थी। एक ख़ुशफहमी ऐसी हुई कि जिस एथलीट वाले फ़िटनेस का सपना देखते रहते हैं शायद अनजाने में मैंने वही हासिल कर लिया है, जिससे आम लोगों की तुलना में हार्टबीट कम हो जाता है। फिर ये भी लगा कि शायद इतनी सारी तेज़ तर्रार कारें चलाने के बाद अब मिजाज़ शांत हो गया है, योगी टाइप का हो गया हूँ। ना हर्ष ना विषाद। तो दिल दिमाग़ संतुलित हो गया है। पर मुँह-हाथ धोकर वापस आ रहा था तो लगा कि शायद घड़ी की रीडिंग ही गड़बड़ा गई होगी 🙂
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