एक चलता फिरता पेंडिग फ़्रेंडशिप रिक्वेस्ट हूँ मैं …
हम सभी कहीं और थे। वहाँ नहीं जहाँ होना चाहते थे। वहां जहाँ होना पड़ रहा था। मजबूरी थी। जहां सबकुछ मनमुताबिक नहीं । मनमाफ़िक नहीं। जहाँ मन नहीं लग रहा था। पर अब नहीं। अब हमारे पास शक्ति है। सिद्धि है। हम शरीर से कहीँ और, मन से कहीँ और हो पा रहे हैं। संत और साधु की मोनोपॉली तोड़ दी गई है। आम जनता भी अब एम्पावर्ड है। वो पावर अब सिर्फ़ आध्यात्मिक पावर सर्किल में सीमित नहीं। सबके पास वो क्षमता है। उद्योगपतियों के पास भी, रिक्शेवाले के पास भी। कामकाजी महिला के पास भी, गृहिणी के पास भी। किशोर छात्र, रिटायर्ड बुज़ुर्ग। अब सशक्त हैं। एक साथ कई जगह पर रहने की शक्ति के साथ। कई कालखंड में जीने के सामर्थ्य के साथ। इंटरनेट और सोशल मीडिया ने अब हमारी अस्तित्त्व के संघर्ष को ख़त्म कर दिया है। शरीर अब बंधन नहीं रहा। वो तात्कालिक सच्चाई है। मन अब मुक्त है। दिल और दिमाग़ का संघर्ष अब सहअस्तित्त्व की बात कर रहे हैं। दोनों ने ठौर पकड़ ली, अपनी शरणस्थली ढूँढ ली है। अब शरीर रीयल वर्ल्ड में जी रहा है। मन वर्चुअल वर्ल्ड में।
पार्क में टहलते हुए खाट पर पड़ी दादी से बात हो रही है। रिक्शे पर सवारी ढोते हुए पत्नी से गॉंव के मकान के बारे में बात चल रही है। दिल्ली में खाना पकाते हुए उड़ीसा में बहन की शादी की तैयारी जान सकते हैं। शरीर ईएमआई की दौड़ में लगा है, मन बचपन की गुल्लक फोड़ रहा है। हम डीटीसी में अकेले लटक रहे हैं फिर भी पूरा परिवार, कुनबा साथ चल रहा है। परिवार-भाई-बहन-दोस्त-चाचा-मामा-मौसी-बुआ-भांजा-भतीजा सब साथ चल रहे हैं। फ़ोन, सस्ते कॉलिंग रेट, फ़्री रोमिंग या कॉलिंग, फ़ेसबुक, व्हाट्सऐप। ये हमारे मन के लिए अलग ब्रह्मांड बना रहे हैं। मन के लिए पैरलल यूनिवर्स। जो यूनिवर्स तमाम ग्रुप में बंटे हैं। परिवार । कॉलेज दोस्त। स्कूली मित्र। प्राइमरी के साथी। सीनियर सेकेंडरी के साथी। कज़िन्स के ग्रुप। गॉंव के ग्रुप। मोहल्ले के ग्रुप। सबसे बातें चल रही हैं, क़िस्से बांटे जा रहे हैं। स्कूली चुटकुले सुने-सुनाए जाने लगते हैं, शिक्षकों की नक़ल करने लगते हैं। अब दिनचर्या, नौकरी, जीविका सिर्फ़ एक स्टेट ऑफ़ माइंड हैं। सच्चाई नहीं। सच्चाई ये है कि घरों-ऑफ़िसों के एसी के कमरों में हम चिलचिलाती धूप में दोस्तों के साथ खेल रहे हैं। रेस्टोरैंट के बुफ़े से खाना खाने के बीच ये जांच लेते हैं इस बार आम के बग़ीचे कितने लदे हैं, फल कितने पके हैं। दोनों ब्रह्मांडों को जोड़ रहे हैं पोस्ट, मेसेज, फ़ॉर्वर्ड मेसेज, ग्रुप मेसेज, डिस्प्ले पिक और स्टेटस अपडेट।
अब ऑफ़िस के क्यूबिकल में रहने की मजबूरी सिर्फ़ शरीर की है। वो क्यूबिकल जिसने गीता के संदेश को झुठला दिया है कि आत्मा कभी मरती नहीं। उस प्राणघातक क्यूबिकल से, मेट्रिक्स फ़िल्म के मिस्टर ऐंडरसन की तरह, मन बिना किसी के परमिशन के कहीं भी भाग सकता है, ईएमआई में दबे कुंठित सहकर्मियों की जगह जाकर स्कूली दोस्तों की चुहलबाज़ी महसूस कर सकता है।
पर हर सिद्दि की तरह दो यूनिवर्स में जीने की क्षमता वाली ये सिद्धी भी मादक भी है। नशीली भी। नॉस्टैल्जिया एक अफ़ीम भी है। जो हमें ख़ुश रखती है। आनंदित। परमानंदित। मन और शरीर की ये दूरी हमें आराम तो देती है पर ख़तरा ये भी है कि हम किस दुनिया को सच मानें। किस सच के साथ जीवनयापन करें। किस सच को बड़ा सच मानें। किसे श्रेष्ठ मानें, किसे त्याज्य। शरीर और मन की कितनी दूरी स्वस्थ है ये भी तो नहीं पता। संतुलन कैसे होगा ? ये भी तो नहीं पता कि मन की क्षमता कितनी है ? कितनों को एक साथ लेकर चल सकता है ? क्या नए संबंध बनाने की क्षमता पर असर नहीं पड़ता है ? क्या छूटना प्राकृतिक नहीं है ? अगर मित्रों का एक ही झुंड हमारे साथ हमेशा जुड़ा रहता तो नए मित्रों की गुंजाईश निकलती ? घनिष्ठता रहती ? क्या क्या जड़ों से जुड़े रहने का सही अर्थ लग रहा है ? अपने व्यक्तित्त्व को सुदृढ़ करने से वाली बुनियाद से ज़्यादा ये सच्चाई से भागने के लिए शरणस्थली के तौर पर इस्तेमाल तो नहीं हो रहा ?
जिधर भी नज़र जा रही है, लग रहा है कि लोग वहाँ नहीं हैं जहाँ वो होना चाहते हैं। यहां रहना मजबूरी है। वर्तमान का कोई मान नहीं है। प्राथमिकता में वर्तमान का दूसरा या तीसरा स्थान है। साथ मेरे बैठ कर बात किसी और से हो रही है। चाय की प्याली मेरे बगल में है लेकिन चुस्की किसी और के साथ। सब्ज़ीवाला मुझे सब्ज़ी बेच रहा है, लेकिन उसका ग्राहक कोई और है। ड्राइव दिल्ली की सड़क पर लेकिन नज़र लखनऊ वाले भाई की चैट पर। गुज़र मेरे सामने से रहा है, लेकिन मुस्कुरा नागपुर वाले भाई के जोक पर रहा है। मेरा चेहरा शायद लोगों को डराता है। मैं लोगों को असहज कर रहा हूँ। मेरी मुस्कुराहट से ज़्यादा सहजता उनके फ़ोन की स्क्रीन देते हैं। मेरी बातें अब केवल फ़ॉरवर्डेड संदेश में उन तक पहुँच पा रही हैं। मैं एक स्माइली हो गया हूँ। मेरी उपस्थिति बिल्कुल अनुपस्थित है। मैं अपने सभी नज़दीकी लोगों के साथ लौंग डिस्टेंस रिलेशनशिप मे हूँ। अब मैं एक चलता फिरता पेंडिग फ़्रेंडशिप रिक्वेस्ट हूँ।
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