सात सेकेंड का वीडियो हमारे ट्रैफ़िक की कौन सी ख़ामियां उजागर कर रहा है ?
दो दिन से एक वीडियो ने सोशल मीडिया और मेनस्ट्रीम मीडिया में काफ़ी चर्चा बटोरी हुई है। दिल्ली से सटे नौएडा और ग्रेटर नौएडा के बीच बने एक्सप्रेस्वे पर लगे सीसीटीवी कैमरे ने एक ऐसे ऐक्सिडेंट को कैप्चर किया है जिसमें एक ऐसी कार शामिल थी जो पूरी चर्चा का केंद्र बनी। तीन कारें इस ऐक्सिडेंट में शामिल थीं। मारुति डिज़ायर, मारुति ईको और लैंबोर्गीनि। वीडियो में दिख क्या रहा है ?इस वीडियो में जो सामने दिख रहा है वो सिर्फ़ इतना कि लैंबोर्गिनी कार दूसरे लेन में चल रही है, इसके ठीक पैरलल यानि समानांतर चल रही मारुति डिज़ायर जो स्पीड लेन में चल रही थी, उसने अपने लेफ़्ट में कट मार दिया। कट मारते ही लैंबोर्गीनि के नज़दीक गई, जिससे ये कार और बाएं छिटक गई। इसके बाद जो हुआ वो सबसे भयावह था। लैंबोर्गीनि जब बाएं हुई तो पीछे से आ रही मारुति इको उससे टकराई और वो संतुलन खो बैठी, सेंकेंड के भीतर टेढ़ी हुई, पलट गई और बाएं तरफ़ पेड़ों में घुस गई।
वीडियो की चर्चा
इस सात सेकेंड के वीडियो में सिर्फ़ इतना ही दिख रहा था। इससे पहले का वीडियो मुझे दिखा नहीं, इसके बाद का भी नहीं।इस वीडियो के आने के बाद जो प्रतिक्रियाएं आईं वो बिल्कल वैसी ही हैं जिसकी हमें आदत हो चुकी है। इस वीडियो को लेकर सोशल मीडिया में सबसे पहले हेडर जो दिखा वो था रईस माँ-बाप की बिगड़ी औलाद वाली थी। जब वीडियो खोल कर देखा तो नज़ारा कुछ और था। फिर किसी अख़बार के वेबसाइट पर कांस्पिरेसी थ्योरी पढ़ी की दोनों कारों के बीच रेस चल रही होगी। असल में जब भी इस तरह की कोई दुर्घटना होती है तो इसी तरह के ऐंगिल देखने को मिलते हैं। और दूसरा ऐंगिल ये है कि चर्चा भी उन्हीं ऐक्सिडेंट की होती है जो सनसनीख़ेज़ होते हैं। चाहे भयावहता के हिसाब से या फिर महंगी गाड़ियों के शामिल होने के मामले में। पर थोड़ा वक़्त लगाकर ख़बरों को पढ़ने देखने वालों को भी देखना पड़ेगा कि कहानी सात सेकेंड के आगे और पीछे भी होती है।
स्पीड लेन में सबसे धीमा ट्रैफ़िक
इसके पीछे एक बहुत बड़ी वजह ओवरटेकिंग लेन को लेकर हमारी सोच और ड्राइविंग की आदत है। आप आजकल जहाँ भी जाएं सड़कों पर स्पीड लेन या ओवरटेकिंग लेन सबसे धीमा मिलेगा। आमतौर पर कारें सबसे दाएं लेन पर ओवरटेकिंग के लिए नहीं जाते, वहाँ जाकर जम जाते हैं, भले ही धीमी ड्राइविंग कर रहे हों। ऐसे में पीछे ट्रैफ़िक अटक जाता है और ढेर सारी गाड़ियां झुंड में, चिपक कर चलने को मजबूर होती हैं। क्योंकि बाक़ी के लेन में तो गाड़ियां धीमी ही चलती हैं। ऐसे में आगे जाने के लिए गाड़ियां बाईं-दाईं तरफ़ से जहाँ से जगह मिलती है ओवरटेक करते हैं। हाल फिलहाल में दिल्ली और आसपास के इलाक़ों में देखें तो लगेगा कि ये बीमारी की तरह फैल चुका स्टाइल है और एक तरीके से सबसे तेज़ ट्रैफ़िक सड़क के बाईं तरफ़ ही चलने लगी है।
ट्रैफ़िक जाम और ग़लत ओवरटेकिंग
डिज़ायर क्यों ऐसे बाएं छिटक गई, लैंबोर्गीनि का ड्राइवर क्यों नहीं रुका, इन सबके बारे में तो कई थ्योरी निकल सकते हैं पर ईको के बारे में ये ज़रूर सच है कि वो बिल्कुल चिपक कर पीछे पीछे चल रही थी और अगली कार से उसका फ़ासला बहुत कम । इन सबके साथ उसकी रफ़्तार इतनी ज़्यादा कि ड्राइवर वक़्त पर कार को ना तो धीमा कर पाया और ना संतुलित। और नतीजा एक शख़्स की जान चली गई। पुलिस की जांच तो अलग चलेगी लेकिन इससे एक बार फिर से हमारे ड्राइविंग कल्चर का सच सामने आ गया है।
क्या कर सकते हैं ?
तो अगर आप देखें तो वीडियो में ये तो साफ़ नहीं हो रहा है कि डिज़ायर और लैंबोर्गीनि में वाकई रेस हो रहा था कि नही। पर ये साफ़ है कि ट्रैफ़िक पुलिस और एजेंसियों को इस मुद्दे पर कुछ तो काम करना पड़ेगा कि ओवरटेकिंग लेन की मर्यादा थोड़ी बची रहे। स्पीड लेन के ब्लॉक होने से ना सिर्फ़ ट्रैफ़िक जाम लग रहा है, बल्कि लेन सिस्टम बिल्कुल ख़त्म हो गया है। ऐसे में फिर ये ड्राइवरों को याद दिलाने की ज़रूरत है कि किस लेन की रफ़्तार कितनी होनी चाहिए और किस लेन का कैसा इस्तेमाल हो। ज़रूरी है लोगों को याद दिलाने के लिए सड़कों पर निशान बढ़ाए जाएं। जगह जगह पर सड़क पर पेंट कर दिया जाए कि लेन केवल ओवरटेकिंग के लिए इस्तेमाल करें। बोर्ड लगाएं जाएं। और ट्रैफ़िक पुलिस भी कुछ कड़ाई करे।
Recent Comments