पहला मैथिली गीत जो मैंने सीखा- “हमरा नहि सोर करू..”
साहित्य के इलाक़े में जो कुछ पढ़ा मैंने उसमें सबसे कम कविताएं रहीं, मैथिली साहित्य और भी कम। वहीं जो पढ़ी भी उनमें से बहुत सी मेरे पिताजी की ही थीं। तो आज एक ऐसा मैथिली गीत जो सबसे पहले मुझे पंसद आया। इसके धुन को भी उन्होंने ही तैयार किया था जिसे मैं भी गुनगुनाने लगा। तो आज उनके जन्मदिन पर सोचा रिटर्न गिफ़्ट दूं। उनकी पढ़ी कविता पर मैंने उनके बनाए धुन को गुनगुनाने की कच्ची-पक्की कोशिश है…
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“हमरा नहि सोर करू, हमर बाट काटल अछि
गामक सीमान जकां हमर मोन बांटल अछि
सीपि में बंद मणि अहांक स्नेह
भोर किरण सूर्यमुखी अहांक देह
करिया पहाड़ तर प्राण हमर जांतल अछि
हमरा नहि सोर करू, हमर बाट काटल अछि
गामक सीमान जकां हमर मोन बांटल अछि
एक गोट पारिजात अहांक नाम
एकटा बबूर बन हमर गाम
दुनू गोटेक बीच समय
निस्सां स मातल अछि
गामक सीमान जकां हमर मोन बांटल अछि
अहां प्रेम आँखिक अमर भाषा
हम कंठ रुद्ध कोनो अभिलाषा
अन्हरिया डोरा स प्राण हमर गांथल अछि
गामक सीमान जकां हमर मोन बांटल अछि
हमरा नय सोर करू, हमर बाट काटल अछि
गामक सीमान जकां हमर मोन बांटल अछि ”
-गंगेश गुंजन
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