जानते हैं – क्या है यूरो एनकैप का क्रैश टेस्ट ?
यूरो एनकैप (Euro NCAP) का मतलब है – यूरोपियन न्यू कार असेसमेंट प्रोग्राम (European New Car Assessment Programme), जिसकी शुरुआत वर्ष 1997 में हुई थी और अब लगभग पूरे यूरोप में इसके नतीजों को माना जाता है।
दरअसल वर्ष 1996 में स्वीडिश नेशनल रोड एडमिनिस्ट्रेशन (SNRA), इंटरनेशनल ऑटोमोबील फेडरेशन (FIA) और इंटरनशनल टेस्टिंग संस्था ने मिलकर यह प्रोग्राम पहली बार शुरू किया था, जिससे यूरो एनकैप की शुरुआत हुई। वर्ष 1997 में इसका पहला नतीजा निकाला गया था, जिसके बाद कार कंपनियों ने इस टेस्ट के कड़े मापदंडों की काफी आलोचना की, लेकिन आज यह स्थिति है कि दुनियाभर में इस रेटिंग को आधिकारिक माना जाता है।
दरअसल, यूरो एनकैप का काम है नई−नई कारों को तोड़ना। जी हां, कारों की मज़बूती उन्हें तोड़कर ही तो जांची जा सकती है, तो इस टेस्ट के तहत नई कारों को क्रैश-टेस्ट किया जाता है, यह जानने के लिए कि वे कितनी सेफ हैं – ड्राइवर, पैसेंजर और यहां तक कि पैदल यात्रियों के लिए भी।
इन्हीं पैमानों पर आमतौर पर पैसेंजर कारों और SUV का क्रैश टेस्ट होता है, जिसके तहत कारों को अलग-अलग एंगल से क्रैश किया जाता है। सभी टेस्ट क्रैश लैब में किए जाते हैं, ताकि टक्कर से जुड़े सभी आंकड़े रिकॉर्ड किए जा सकें। किए जाने वाले टेस्टों में शामिल हैं, फ्रंटल इम्पैक्ट, यानि सीधी टक्कर, जिसमें कार जाती है 64 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से और टकराती है अपने बराबर के वज़न वाले एक ढांचे से। इसके अलावा किए जाते हैं – साइड इम्पैक्ट (यानि साइड की टक्कर का टेस्ट), और पोल इम्पैक्ट (यानि खंभे या पेड़ से टक्कर) टेस्ट। इन सभी के अलावा पेडेस्ट्रियन प्रोटेक्शन टेस्ट भी होता है, जिसमें जांचा जाता है कि अगर कार किसी पैदल यात्री से टकरा जाए तो उन्हें कितना नुकसान पहुंचेगा।
इन क्रैश टेस्टों के बाद कारों को मिलते हैं स्टार, यानि सितारे। यूरो एनकैप हर नई कार पर रिपोर्ट जारी करता है, जिसमें पता चलता है कि कार किसके लिए कितनी सेफ है। जिनमें वयस्क यात्रियों (एडल्ट), बच्चों, तथा पैदल यात्रियों की कैटेगरी शामिल हैं। हर कार को उसकी सेफ्टी के हिसाब से स्टार मिलते हैं। सबसे सेफ, यानि सुरक्षित कार को मिलते हैं पांच सितारे।
यूरोप के ग्राहक खुद भी पता कर सकते हैं कि कौन-सी कार कितनी सेफ है। उन्हें जाना होगा euroncap.com पर, जहां उन्हें अपनी कार पर क्लिक करना होगा। लेकिन अफसोस है कि इस लिस्ट में यूरोप की कारें ही रही हैं, और हिन्दुस्तानी कारों की तो अभी एंट्री ही हुई है।
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