इस हफ़्ते हम किसका बायकॉट करने वाले हैं ?
बचपन से ही मैं चाहता था कि मैं बायकॉट करूं। बहुत दिन ललक थी। पर एक्प्रेस नहीं कर पा रहा था। परिस्थितियां मेरी इस इच्छा को चारों ओर से कूट रही थीं, जैसे अनजान कॉलनी में घुसे कुत्ते की हालत होती है। पहले तो ये शर्त सुना कि बायकॉट केवल लड़कियां ही कर सकती थी। बल्कि क्लास में दो-तीन लड़कियां तो थीं भी, जिन्होंने बायकॉट किया था। पर ग़ौर करने पर पता चली की बायकॉट के मामले में मेरे लिए ना सिर्फ़ जेंडर एक चुनौती है, क्योंकि मैं तब भी एक लड़का ही था, बल्कि मेरे लिए सबसे बड़ी चुनौती क्लास की थी (मतलब लोअर मिडिल क्लास), क्योंकि वो सभी लड़कियां बड़े घरों की बेटियां थीं। फिर ये भी कहा जाता था कि सब पर बायकॉट फबता भी नहीं है। तो छोटी उमर से ही मैंने ख़ुद को अस्तित्व के गूढ़ सवालों से घिरता हुआ पाया। जेंडर, क्लास और आइडेंटिटी हर स्तर पर विचार हिलकोरे खा रहे थे। बल्कि मेरी एज ग्रुप के कई प्रबुद्ध तो उसी आग में तप पर सोना बने हैं (कुछ तो सोने के बिस्कुट भी)। क्योंकि भारत में बाल्यावस्था वाकई सबसे चुनौती वाला फेज़ हुआ करता था। जैसा कि हर सच्चाई के साथ कहा जाता है, यही है कड़वी सच्चाई भारत की। अब देश के जिस हिस्से में मैं रहता हूँ वहां पर बच्चों को पंचवर्षीय योजना के तहत पाला जाता है। नहीं तो पहले बच्चे पाले नहीं जाते थे, पल जाते थे और फिर जब अपनी माँ को जन्मदिन पर पूरी बिल्डिंग ख़रीद कर गिफ़्ट करते हैं तब माँ को पता चलता था कि बेटा अब कूली नहीं रहा, प्रॉपर्टी डीलर हो गया है। लेकिन वो एक अलग डिस्कोर्स है। मैं अपनी बचपन की उस दुविधा के बारे में बता रहा था जो आज मेरे जीवन में फिर आई है। बायकॉट । तो बचपन में चूंकि गूगल नहीं था और व्हाट्सएप भी नहीं था तो ये पता नहीं कर पाए थे कि दरअसल मेरी महत्वाकांक्षा गलत प्लैटफॉर्म पर उतर गई थी, मुझे एक क्लासमेट ने, जो वीडियो पार्लर चलाने वाला का बेटा था, उसने बताया कि बायकॉट एक राजनैतिक प्रक्रिया है और बॉयकट एक केशीय प्रक्रिया। बायकॉट कर सकते हैं और बायकट जो ब्वायकट का अपभ्रंश था, वो करवाया जाता था।
आमतौर पर लड़कियों द्वारा किसी हेयरस्टाइलिस्ट से। तब अचानक जीवन का नया द्वंद मेरे सामने आया, कि मेरी महत्वाकांक्षा और मेरा लक्ष्य नदीम और श्रवण जैसे हो गए थे। जो साथ-साथ-अलग-अलग रह कर संगीत दे रहे थे। ख़ैर ये इनसाइट एक नई चुनौती लेकर आया। जब सामने जेंडर और क्लास की दीवार नहीं थी तो क्या मैं बायकॉट कर सकता था ? वो दिन है और आजका दिन है। मेरे सामने एक बार फिर से जीवन मौक़ा लेकर आया है। सुनहरा मौक़ा । बचपन का सपना पूरा करने का। बायकॉट करने का। और इसके लिए सोचने की ज़रूरत भी नहीं रही। व्हाट्सऐप पर ही विकल्पों की पूरी लिस्ट दी गई है। पटाख़े, फुलझड़ियां, लक्ष्मी-गणेश की लाइट लगी मूर्ति, चुटपुटिया बंदूक और इसी तरह के खुदरा सामान। लेकिन समस्या ये है कि बायकॉट करने की मेरी युग युगांतर वाली प्यास सिर्फ़ इतने से बुझ नहीं रही है। जीवन भर इंतज़ार करने के बाद बायकॉट करूं भी तो सिर्फ़ इतना ही ? ख़ाली पटाख़ा फुलझड़ी पर क्या बॉयकॉट करना ? प्लीज़ लेट्स डू मोर। उठाते हैं बीड़ा, जगाते हैं अलख और बंद करवाते हैं आईफ़ोन-लीको-हुवई सबका दुकान। बंद करवाते हैं मैकबुक से नेटबुक तक को। अंट-शंट सस्ता चाइनीज़ मोबाइल फ़ोन। आख़िर वो गुंजाइश रहे ही क्योंकि कि चाइनीज़ फ़ोन ख़रीद कर, चाइना का रेवेन्यू बढ़ा कर ,उसी फ़ोन से चीनी सामान बायकॉट करने की बात करने पर हमें कोई हिपोक्रिट कहे । क्यों विडंबना में लटपटाएं। चलिए करते हैं कि एक मुहिम दिवाली से पहले छोटी दिवाली मनाइए चाइनीज़ फ़ोन को अग्नि देवता को समर्पित करके । कसम खाया जाए कि जब तक बाबा रामदेव जब तक मोबाइल फोन नहीं लाते किसी मोबाइल फोन को हाथ नहीं लगाएंगे जिसका एक भी रुपया चीन जाता हो। या फिर मेरी तरह वियतनाम का मैनुफैक्चरिंग वाला फोन लेंगे जो मजाल है कि चल जाए। वैसे केवल फोन, टैबलेट नहीं। आज से कसम खाइए कि किसी भी इंसान को फ़ोन करके सबसे पहेल पूछेंगे कि फ़ोने चाइनीज़ तो नहीं , अगर हो तो तुरत के तुरत कॉल डिस्कनेक्ट। आज से कसम खाइए कि खाली कोल्हापुरी पहना जाएगा ये नहीं कि करोल बाग और अली एक्सप्रेस से जूता मंगवा के मटक लिए। वैसे सुना है कि ढेर सारा एंटीबायोटिक भी वहीं से आ रहा है। तो चेक करके खाइएगा अगली बार। लाइट-बत्ती-एलईडी भी फसाद की जड़ है। लिस्ट लंबी है। बहुत कुछ बायकॉट करना होगा। पर डरने की बात नहीं। बस कोशिश होनी चाहिए कि क्या बीस पचास रु का झटका देना चीन को। कोशिश तो कीजिए बदलेगा इंडिया। आज से लेकर दिवाली तक अपने और आपके रिश्तेदारों सबके घर में, किचेन में, ड्राइंग रूम मे, बाथरूम में चीन में बना सामान निकाल निकाल कर तुरत के तुरत बायकॉट करवाइए।
क्या पटाखा छुरछुरी पर बीस रुपए किलो आलू-प्याज़ की तरह मोलभाव करते हैं और अरे करना है तो दस लाख की मारुति-ह्युंडै कार पर मोलभाव कीजिए।पांच रुपए का नहीं, डिस्काउंट लेना है कि लाख रु का लीजिए। चिंदीचोरी काहे करें हम, सीनाज़ोरी दिखाने का टाइम है। वैसे अगर लाइफ़ से चीनी सामानों को निकालना मुश्किल हो रहा है कि तो एक आसान रास्ता भी है, पाकिस्तान पर फोकस कीजिए। वहां के लिए ज़्यादा कुछ छोड़ना नहीं पड़ेगा। वहां से या आतंकी आते हैं नहीं तो सूरमा। वो दोनों भी छोड़िए। कुछेक कलाकार आते हैं। लेट्स फ़ोकस ऑन देम। जल्दी कीजिएगा, स्कीम सीमित समय के लिए है।
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