अखिलेश यादव ने हिंदुस्तानी बेटों को सांत्वना दी है “वी आर सेम टू सेम”
हम भारतीयों को राजशाही की लत है। जब तक राजशाही की ख़ुराक नहीं मिलती पेट में मरोड़ उठता रहता है, सर घूमता रहता है, ऑंखें धंसी रहती हैं। इस लत को डाउनमार्केट चीज़ों से ख़ुराक नहीं मिलती। आधा दर्जन राज्य के लोग पानी के लिए लड़ मरें, नो प्रौब्लेम। ग्रासरूट की चीज़ें घोड़ों का ऐपेटाइट शांत करती हैं हमारी नहीं। जनपथ हाहाकार है, राजपथ ही साकार है। इसीलिए यादव परिवार के झगड़े ने समूचे संसार का ध्यान खींचा हुआ था। वसुधैव कुटुंबकम वाले मीटर से नाप कर संसार नहीं कह रहा, मैं इस काउबेल्टी कुँएं के बारे में कह रहा हूँ, जिसके सरोकारों का पूरा ब्रह्मांड एनसीआर के तीन-चार सौ किलोमीटर में सीमित है। वहां के लिए यादव परिवार का झगड़ा -वेरी इंपोर्टेंट। बहुत दिनों की जनवादी समस्याओं की बेस्वाद ख़बरों के बीच यादव परिवार कलह एक बिरयानी की तरह आया। हम सब टूट पड़े जिस पर। फिर तो समस्या की हैसियत क्या बची थी ? बिना सुलझे उसका कोई गुज़ारा था ? और फिर जहां शिवपाल और अखिलेश ने ये कहा- “होगा वही जो नेताजी कहेंगे”, हमने राहत की सांस ली। हमें लगा कि हमारी मेहनत सफल हुई है। शाही परिवार में सबकुछ सामान्य हो गया है। फिर से नाइन-इलेवन 2016 से पहले वाली स्थिति में सरकार चली आई है।
ख़ैर। ना तो राजनीति के गलियारे की कबड्डी में अपनी एंट्री है, ना दर्शक-दीर्घा से साफ़ दिख रहा है, पर ये लगा कि पिता-चचा की छत्रछाया में रहने वाले अखिलेश जी पैर पटक के रह गए। हुआ वही जो मंज़ूरे-बुज़ुर्ग था। अखिलेश यादव ने भी माइक पर आकर कहा “ होगा वही जो पिताजी चाहते हैं”। वैसे इसमें क्या अप्रत्याशित था। हमें तो बात पता ही थी। अपन जैसे शून्य-बटा-सन्नाटा राजनीतिक समझ वाले को भी बात तो पता थी ही।आख़िरकार वही हुआ जो आदिकाल से भारतवर्ष में होता आया है। पापा-चाचा गद्दी धरे हुए हैं और युवराज किकिया रहे हैं। वही हुआ। ओल्ड इज़ स्टिल गोल्ड। यंग इज़ स्टिल क्लीन बोल्ड। पहले तो थ्री इडियट्स के फ़रहान की तरह अखिलेश ने चांचड़ की बात सुनकर बलवा तो कर दिया लेकिन उस चक्कर में भुला गए कि सामने परीक्षित साहनी नहीं है कि लैपटॉप बेच कर कहेंगे कि कैमरा ख़रीद लो। सामने नेताजी हैं। वो कहेंगे टेढ़ियाइए मत, तुरत के तुरत पोर्टफ़ोलियो वापस करिए और ऊपर से प्रजापति भी। अबाउट टर्न। वही हुआ भी।
तो इस घटनाक्रम से मैं हर्ट तो हूँ, हतप्रभ नहीं। क्योंकि इस देश के चरित्र का परम सत्य मुझे पता है, सोशल मेट्रिक्स की गूढ़ संरचना पता है। किसी भी ऐवरेज हिंदुस्तानी बेटे की तरह। इस देश की सच्चाई फ़रहान और उसके पापा नहीं हैं। इस देश की सच्चाई देव-डी और उसके डैड हैं। सलीम और जहाँपनाह है। जहां इन नौजवानों का प्रारब्ध है रो-पीटकर टियर ग्लैंड को नष्ट करना, ताड़ी पीकर लीवर। फिर जब सबकुछ नष्ट हो जाए तो अपने बेटे के बड़े होने का इंतज़ार करना। कुंठा का एक अद्भुत चक्र चल रहा है। वैसे बवाल तो सदियों से चला आ रहा है। इस हवा में ही ये जीवाणु टहलते रहते हैं जो नौजवानों का खेल ख़राब करते हैं। बल्कि इसका तो एक नाम भी पढ़ा था हमने देवदत्त पटनायक की किताब में। ययाति कौंप्लेक्स के नाम से। ययाति को जवान रखने के लिए बेटे ने अपनी जवानी पिता को दे दी। बताइए। इसी सब घटनाओं ने बेटे के त्याग और बलिदान को ग्लोरीफ़ाई कर दिया है। उस प्रेशर में सदियों से हिंदुस्तानी बेटों की क़ौम दबी हुई जी रही है। कोयला होते तो दब दब के कबका हीरा बन चुके होते और बन गए जीरा। ऊँट के मुँह वाला। यूज़लेस। सोचिए इक्कीसवीं सदी में ये हालत है। अपने मन का भ्रष्ट मंत्री भी नहीं रख सकते, वो भी पिताजी की पसंद होना चाहिए। राजनीति में तो सौ फ़ीसदी आ चुका है लेकिन पिता-पुत्र संबंध में समाजवाद हैज़ ए लौंग वे टू गो ।
शुरुआत में दबे-कुचले स्वर में आज्ञाकारी पुत्र जैसे साउंडबाइट देते अखिलेश बाद में मुखर भी हुए तो भी बलात्कारियों को डिफ़ेंड करते बयान नहीं सुने, अपने सहयोगियों को चोर कहते नहीं सुना। मायावती की चुटकी भी बुआ कहते हुए ही सुना है। तो ऐसे विनम्रता से विद्रोह करने वाले अखिलेश दबे कुचले बेटों के लिए एक पायनियर बने हैं। पिता-चाचा के सामने आवाज़ उठाने वाले। जो अपने पसंद से हेयरकट करवाना चाहते हैं, स्लिम फ़िट पैंट पहनना चाहते हैं, मौसी की बेटी की शादी में नहीं जाना चाहते हैं, साइंस की जगह कॉमर्स पढ़ना चाहते हैं, रोज़ सब्ज़ी लेने नहीं जाना चाहते हैं, उन सबके लिए अनुकरणीय काम किया है। अखिलेश का ये क़दम क्रांतिकारी नहीं है, उसका नतीजा बस सांत्वना देने वाला है, देश के बेटों को, कि वो अकेले नहीं हैं, देश के सबसे बड़े राज्य के मुख्यमंत्री भी उन्हीं के जैसे हैं।
ख़ैर, पूरे प्रकरण पर हृदय द्रवित था, अधेड़ता की ओर अग्रसर युवा का दर्द था, युवराज को ऐसे देखना हर्टफ़ुल था। लेकिन दर्द इतना नहीं था कि कविता बन जाती, ब्लॉग बन के रह गया। अब कहीं मेरा ये ब्लॉग अखिलेश ग़लती से पढ़ लें तो हम उनके आश्वस्त करते हैं कि अब भारतवर्ष के राजनैतिक परिवारों में वानप्रस्थ मैंडेटरी करवाने के ऊपर एक मुहिम डिज़ाइन किया जा रहा है। तजुर्बे के नाम पर ब्लैकमेल करने वालों का रिटायरमेंट एज सेट किया जाएगा। बाक़ी करप्शन की लड़ाई के लिए जो मुहिम शुरू हुई थी उसका हश्र देखकर इन्वेस्टर थोड़ा घबराए हुए हैं। बट वी शैल ओवरकम।
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