स्कूटरनामा
हर बारिश के मौसम में मेरी दोस्ती होती थी विजय से। वो मौसम, जिसमें एशिया की सबसे बड़ी कॉलनी कहे जाने वाले पटना के बहुगर्वित कंकड़बाग कॉलनी का ट्रांसफ़ॉर्मेशन होता था, एशिया की सबसे बड़ी कॉलनी से इंसान के रिहाइश वाली झील मे। और इसी मौसम में अशोक नगर में रहने वाले मेरे चाचाजी विजय को हमारे घर छोड़ जाते थे। सड़क पर जमा पानी में ना चल पाना उसका नखरा नहीं, उसकी मेकैनिकल मजबूरी थी। क्योंकि विजय का पूरा नाम था विजय सुपर। 80 के दशक का स्कूटर। जीहां शुरूआत थोड़ा नाटकीय रखा है मैंने आज, क्योंकि स्कूटरों की कहानी मुझे थोड़ी नाटकीय लगती है। स्कूटर चल रही है या चल रहा है इस दुविधा में मैंने लगभग एक दशक निकाल दिया है। बिहार प्रदेश का होने की वजह से मुझे शंका तो हमेशा रही हालांकि पुकारा हमेशा पुल्लिंग ही है। लेकिन तीस-चालीस पहले जाएं और पुरानी वेस्पा स्कूटर को देखें तो वो ऑटोमैटिकली ख़ूबसूरत और कमनीय लगेगी, लगेगा नहीं। हालांकि भारत में प्रिया या बजाज सुपर तक तो वो नैन-नक्श बचे थे लेकिन लैंब्रेटा, विजय सुपर और बजाज चेतक ने स्कूटर को पूरा मेल डोमेन में डाल दिया था। एक ट्रांसफ़ोर्मेशन पूरा हुआ।
1972 में भारत सरकार ने लैंब्रेटा की फ़ैक्ट्री और ब्रांड ख़रीद कर जब भारत में स्कूटरों का नया युग शुरू किया था, स्कूटर इंडिया लिमिटेड के नाम से। तब वजह तो एक ही थी, सस्ता ट्रांसपोर्टेशन। जो कार नहीं ख़रीद सकते थे वो स्कूटर ले लें। गरीबी और बुनियादी ढांचे की कमी झेल रहे देश में ऐसी सवारी की तो ज़रूरत थी ही। इसी कंपनी ने विजय सुपर भी बनाया और एक पूरी पीढ़ी को एक जगह से दूसरी जगह पर पहुंचाया। उसी दौरान एक और कंपनी लगी हुई थी ऐसे ही ट्रांसपोर्टेशन में । बजाज जिसकी कहानी शुरू हुई थी वेस्पा स्कूटरों को भारत में बेचने से। और इसी कंपनी ने सबसे लंबे वक्त तक स्कूटर के झंडे को उठाए रखा था भारत में। बजाज चेतक, सुपर, प्रिया, क्लासिक वगैरह। और बजाज को हमारा बजाज बनाने वाला चेतक, जो देश में स्कूटरों का पोस्टरब्वॉय था, उसका सफ़र भी बड़े नाटकीय ढंग से ख़त्म हुआ। बेटे राजीव बजाज ने कहा कि नहीं बनाएंगे अब पिता ने कहा कि हां बनाएंगे। वो कहानी भी ख़त्म हुई।
मुझे वो वक्त तो याद है जब हीरो हौंडा की एंट्री हुई थी। जब सीडी 100 आई थी, जो मुझे येज़डी और बुलेट की भीड़ में अजीब सी सवारी लगती थी। लेकिन उस वक्त नहीं पता था कि यही बाइक कहानी ख़त्म करेगी स्कूटरों की भारत में। हीरो हौंडा ने जिस तरीके से भारत का मोटरसाइकिलीकरण किया, वो आज तक जारी रहा है। लेकिन एक और विडंबना ये है कि जिस हौंडा ने भारत में स्कूटरों को ख़त्म किया, वही उसे वापस लाई भी। जब एलएमएल वेस्पा से लेकर बजाज ने अपने हाथ खड़े कर दिए थे वहीं हौंडा मोटरसाइकिल्स एंड स्कूटर्स ने भारत में स्कूटरों में अपना भविष्य देखा। फ़ोर स्ट्रोक और बिना गियर की ऐक्टिवा आज देश के लगभग सभी शहरों में दिखेगी, और ग्राहक इसके लिए तीन-चार महीने इंतज़ार भी कर रहे हैं। और इसी के साथ शुरू हो चुका है स्कूटर का यू-टर्न।
वैसे स्कूटरों की बात अधूरी रहेगी अगर काइनेटिक हौंडा का ज़िक्र ना हो। यंगस्टर्स के बीच जो पुकारी जाती थी काईनी। बिना गियर की काईनेटिक हौंडा इतनी हिट हुई थी, हालांकि तबके स्कूटरों के मुक़ाबले उसकी हल्की बॉडी का हमेशा मज़ाक होता था। मेरे एक मित्र की फेवरेट कहानी है कि वो और उनके पिताजी, पुरानी लैंब्रेटा से जा रहे थे और सामने से एक काइनेटिक हौंडा आ गई…दोनों की कमर लड़ी, काइनेटिक पलट गई लेकिन लैंब्रेटा मस्त चाल में चलती रही। उसकी चाल में कोई फर्क नहीं आया। लेकिन उस किस्से को अब बहुत दिन हो गया है…
(* नए ब्लॉग पर अपने पुराने ब्लॉग से ये कॉपी पेस्ट कर रहा हूं पहले पोस्ट की तरह। इसे देखकर याद आया कि इस नाम के बारे में कब कब सोचा था मैंने )